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    विघण हरण गणराज है,
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<poem>
    शंकर सुत देवाँ
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विघण हरण गणराज है,
    कोट विघन टल जाएगाँ,
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शंकर सुत देवाँ
    हारे गणपति गुण गायाँ..
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कोट विघन टल जाएगाँ,
    विघण हरण...
+
हारे गणपति गुण गायाँ..
 +
विघण हरण...
  
(१) शीव की गादी सुनरियाँ,
+
शीव की गादी सुनरियाँ,
    ब्रम्हा ने बणायाँ
+
ब्रम्हा ने बणायाँ
    हरि हिरदें में तुम लावियाँ,
+
हरि हिरदें में तुम लावियाँ,
    सरस्वति गुण गायाँ...
+
सरस्वति गुण गायाँ...
    विघण हरण.......
+
विघण हरण...
  
(२) संकट मोचन घर दयाल है,
+
संकट मोचन घर दयाल है,
    खुद करु रे बँड़ाई
+
खुद करु रे बँड़ाई
    नवंमी भक्ति हो प्रभु देत है
+
नवंमी भक्ति हो प्रभु देत है
    गुण शब्द की दाँसी....
+
गुण शब्द की दाँसी...
    विघण हरण.......
+
विघण हरण...
  
(३) गण सुमरे कारज करे,
+
गण सुमरे कारज करे,
    लावे लखं आऊ माथ
+
लावे लखं आऊ माथ
    भक्ति मन आरज करे,
+
भक्ति मन आरज करे,
    राखो शब्द की लाज....
+
राखो शब्द की लाज...
    विघण हरण.....
+
विघण हरण...
  
(४) रीधी सीधी रे गुरु संगम,
+
रीधी सीधी रे गुरु संगम,
    चरणो की दासी
+
चरणो की दासी
    चार मुल जिनके पास में,
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चार मुल जिनके पास में,
    हारे राखो चरण आधार...
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हारे राखो चरण आधार...
    विघण हरण....
+
विघण हरण...

17:37, 18 अप्रैल 2013 के समय का अवतरण

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

विघण हरण गणराज है,
शंकर सुत देवाँ
कोट विघन टल जाएगाँ,
हारे गणपति गुण गायाँ..
विघण हरण...

शीव की गादी सुनरियाँ,
ब्रम्हा ने बणायाँ
हरि हिरदें में तुम लावियाँ,
सरस्वति गुण गायाँ...
विघण हरण...

संकट मोचन घर दयाल है,
खुद करु रे बँड़ाई
नवंमी भक्ति हो प्रभु देत है
गुण शब्द की दाँसी...
विघण हरण...

गण सुमरे कारज करे,
लावे लखं आऊ माथ
भक्ति मन आरज करे,
राखो शब्द की लाज...
विघण हरण...

रीधी सीधी रे गुरु संगम,
चरणो की दासी
चार मुल जिनके पास में,
हारे राखो चरण आधार...
विघण हरण...