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− | यह जगत जिसके सहारे से सदा फूले-फले।
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− | ज्ञान का दीया निराली ज्योति से जिसके जले।
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− | आँच में जिसके पिघल कर काँच हीरे सा ढले।
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− | जो बड़ा ही दिव्य है, तलछट नहीं जिसके तले।
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− | हैं उसे कहते धरम, जिस से टिकी है, यह धारा।
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− | तेज से जिसके चमकता है, गगन तारों-भरा।1।
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− | पालने वाला धरम का है कहता धर्मवीर।
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− | सब लकीरों में उसी की है बड़ी सुन्दर लकीर।
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− | है सुरत्नों से भरी संसार में उसकी कुटीर।
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− | वह अलग करके दिखाता है जगत को छीर नीर।
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− | है उसी से आज तक मरजादा की सीमा बची।
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− | सीढ़ियाँ सुख की उसी के हाथ की ही हैं रची।2।
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− | एक-देशी वह जगत-पति को बनाता है नहीं।
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− | बात गढ़ कर एक का उसको बताता है नहीं।
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− | रंग अपने ढंग का उस पर बढ़ाता है नहीं।
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− | युक्तियों के जाल में उसको फँसाता है नहीं।
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− | भेद का उसके लगाता है वही सच्चा पता।
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− | ठीक उसका भाव देती है वही सब को बता।3।
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− | तेज सूरज में उसी का देख पड़ता है उसे।
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− | वह चमकता बादलों के बीच मिलता है उसे।
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− | वह पवन में और पानी में झलकता है उसे।
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− | जगमगाता आग में भी वह निरखता है उसे।
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− | राजती सब ओर है उसके लिए उसकी विभा।
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− | पत्थरों में भी उसे उसकी दिखाती है प्रभा।4।
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− | पेड़ में उसको दिखते हैं हरे पत्ते लगे।
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− | वह समझता है सुयश के पत्र हैं उसके टँगे।
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− | फूल खिलते हैं, अनूठे रंग में उसके रँगे।
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− | फल, उसे, रस में उसी के, देख पड़ते हैं पगे।
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− | एक रजकण भी नहीं है आँख से उसकी गिरा।
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− | राह का तिनका दिखाता है उसे भेदों भरा।5।
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− | सोचता है वह, जो मिलते हैं उसे पर्वत खड़े।
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− | हैं उसी की राह में सब ओर ये पत्थर गड़े।
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− | जो दिखाते हैं उसे मैदान छोटे या बड़े।
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− | तो उसे मिलते वहाँ हैं ज्ञान के बीये पड़े।
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− | वह समझता है पयोनिधि प्रेम से उसके गला।
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− | जंगलों में भी उसे उसकी दिखाती है कला।6।
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− | हैं उसी की खोज में नदियाँ चली जाती कहीं।
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− | है तरावट भूलती उसकी कछारों को नहीं।
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− | याद में उसकी सरोवर लोटता सा है वहीं।
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− | निर्झरों के बीच छींटें हैं उसी की उड़ रहीं।
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− | वह समझता है उसी की धार सोतों में बही।
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− | झलमलाता सा दिखाता झील में भी है वही।7।
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− | भीर भौंरों की उसी की भर रही है भाँवरें।
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− | गान गुण उसका रसीले कण्ठ से पंखी करें।
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− | भनाभना कर मक्खियाँ हर दम उसी का दम भरें।
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− | तितलियाँ हो निछावर ध्यान उसका ही धरें।
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− | वह समझता है, न है, झनकार झींगुर की डगी।
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− | है सभी कीड़े मकोड़ों को उसी की धुन लगी।8।
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− | है अछूती जोत उसकी मंदिरों में जग रही।
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− | मसजिदों गिरजाघरों में भी दरसता है वही।
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− | बौद्ध-मठ के बीच है दिखला रहा वह एक ही।
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− | जैन-मंदिर भी, छुटा उसकी छटा से है नहीं।
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− | ठीक इनमें दीठ जिसकी है नहीं सकती ठहर।
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− | देख पड़ती है उसी की आँख में उसको कसर।9।
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− | शद्म उसके ही लिए देता जगत को है जगा।
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− | बाँग भी सबको उसी की ओर देती है लगा।
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− | गान इन ईसाइयों का ताल औ लय में पगा।
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− | इस सुरत को है उसी की ओर ले जाता भगा।
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− | जो बिना समझे किसी को भी बनाता है बुरा।
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− | वह समझता है, वही सच पर चलाता है छुरा।10।
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− | हो तिलक तिरछा, तिकोना, गोल, आड़ा या खड़ा।
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− | गौन हो, दस्तार हो, या बाल हो लाँबा बड़ा।
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− | जो बनावट का बुरा धब्बा न हो इन पर पड़ा।
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− | तो सभी हैं ठीक, देते हैं दिखा पारस गड़ा।
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− | जो इन्हें लेकर झगड़ता या उड़ाता है हँसी।
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− | जानता है, वह समझ है जाल में उसकी फँसी।11।
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− | गेरुआ कपड़ा पहनना, घूमना, दम-साधना।
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− | राख मलना, गरमियों में आग जलती तापना।
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− | जंगलों में वास करना, तन न अपना ढाँकना।
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− | बाँधाना कंठी, गले में सेल्हियों का डालना।
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− | वह इन्हें मन जीत लेने की जुगुत है जानता।
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− | जो न उतरा मैल तो सूखा ढचर है मानता।12।
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− | पतजिवा, रुद्राक्ष, तुलसी की बनी माला रहे।
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− | या कोई तसवीह हो या पोर उँगली की गहे।
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− | या बहुत सी कंकड़ी लेकर कोई गिनना चहे।
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− | या कि प्रभु का नाम अपनी जीभ से यों ही कहे।
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− | लौ लगाने को बुरा इनमें नहीं है एक भी।
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− | आँख में उसकी नहीं तो, काठ मिट्टी हैं सभी।13।
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− | ध्यान, पूजा, पाठ, व्रत, उपवास, देवाराधना।
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− | घूमना सब तीरथों में, आसनों को साधना।
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− | योग करना, दीठ को निज नासिका पर बाँधना।
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− | सैकड़ों संयम नियम में इन्द्रियों को नाधना।
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− | वह समझता है सभी हैं ज्ञान-माला की लड़ी।
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− | जो दिखावट की न भद्दी छींट हो इन पर पड़ी।14।
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− | बौद्ध, त्रिपिटिक, बाइबिल, तौरेत, या होवे कुरान।
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− | जिन्दबस्ता, जैन की ग्रन्थावली, या हो पुरान।
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− | वेद-मत का ही बहुत कुछ है हुआ इनमें बखान।
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− | है बहा बहु धार से इनमें उसी का दिव्य ज्ञान।
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− | ठीक इसका भेद गुण लेकर वही है बूझता।
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− | है बुरी वह आँख अवगुण ही जिसे है सूझता।15।
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− | बुद्ध, जैन, ईसा, मुहम्मद, और मूसा को भला।
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− | कौन कह सकता है, दुनिया को इन्होंने है छला।
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− | सोच लो जश्रदश्त भी है क्या कहीं उलटा चला।
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− | ये लगाकर आग दुनिया को नहीं सकते जला।
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− | वह इसीसे है समझता वेद के पथ पर चढ़े।
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− | ये समय और देश के अनुसार हैं आगे बढ़े।16।
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− | बौद्ध, हिन्दू, जैन, ईसाई, मुसलमाँ, पारसी।
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− | जो बुराई से बचें, रक्खे न कुछ उसकी लसी।
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− | धर्म की मरजाद पालें हो सुरत हरि में बसी।
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− | तो भले हैं ये सभी, दोनों जगह होंगे जसी।
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− | वह उसी को है बुरा कहता किसी को जो छले।
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− | है धरम कोई न खोटा ठीक जो उस पर चले।17।
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− | बौद्ध-मत, हिन्दू-धरम, इसलाम या ईसाइयत।
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− | हैं, जगत के बीच जितने जैन आदिक और मत।
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− | वह बताता है सभों की एक ही है असलियत।
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− | है स्वमत में निज विचारों के सबब हर एक रत।
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− | ठौर है वह एक ही, यह राह कितनी हैं गयी।
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− | दूध इनका एक है, केवल पियाले हैं कई।18।
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− | वह क्रिया से है भली जी की सफाई जानता।
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− | पंडिताई से भलाई को बड़ी है मानता।
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− | वह सचाई को पखंडों में नहीं है सानता।
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− | वह धरम के रास्ते को ठीक है पहचानता।
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− | ज्ञान से जग-बीच रहकर हाथ वह धोता नहीं।
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− | आड़ में परलोक की वह लोक को खोता नहीं।19।
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− | तंग करना, जी दुखाना, छेड़ना भाता नहीं।
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− | वह बनाता है, कभी सुलझे को उलझाता नहीं।
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− | देखकर दुख दूसरों का चैन वह पाता नहीं।
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− | एक छोटे कीट से भी तोड़ता नाता नहीं।
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− | लोक-सेवा से सफल होकर सदा बढ़ता है वह।
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− | धूल बनकर पाँव की जन शीश पर चढ़ता है वह।20।
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− | धान, विभव, पद, मान, उसको और देते हैं झुका।
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− | प्रेम बदले के लिए उसका नहीं रहता रुका।
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− | वह अजब जल है उसे जाता है जो जग में फँका।
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− | बैरियों से वह कभी बदला नहीं सकता चुका।
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− | प्यार से है बाघ से विकराल को लेता मना।
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− | वह भयंकर ठौर को देता तपोवन है बना।21।
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− | हैं कहीं काले बसे, गोरे दिखाते हैं कहीं।
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− | लाल, पीले, सेत, भूरे, साँवले भी हैं यहीं।
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− | पीढ़ियाँ इनकी कभी नीची, कभी ऊँची रहीं।
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− | रँग बदलने से बदलती दीठ है उसकी नहीं।
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− | भेद वह अपने पराये का नहीं रखता कभी।
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− | सब जगत है देश उसका जाति हैं मानव सभी।22।
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− | वह समझता है सभी रज बीर्य से ही हैं जना।
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− | मांस का ही है कलेजा दूसरों का भी बना।
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− | आन जाने पर न किसकी आँख से आँसू छना।
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− | दूसरे भी चाहते हैं मान का मुट्ठी चना।
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− | खौलना जिसका किसी से भी नहीं जाता सहा।
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− | है रगों में दूसरों की भी वही लहू बहा।23।
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− | वह तनिक रोना, कलपना और का सहता नहीं।
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− | हाथ धोकर और के पीछे पड़ा रहता नहीं।
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− | बात लगती वह किसी को एक भी कहता नहीं।
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− | चोट पहुँचाना किसी को वह कभी चहता नहीं।
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− | जानता है दीन दुखियों के दरद को भी वही।
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− | बेकसों की आह उससे है नहीं जाती सही।24।
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− | ए चुडैलें चाह की उसको नहीं सकतीं सता।
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− | प्यार वह निज वासनाओं से नहीं सकता जता।
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− | मोह की जी में नहीं उसके उलहती है लता।
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− | है कलेजे में न कोने का कहीं मिलता पता।
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− | रोस की, जी में कभी उठती नहीं उसके लपट।
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− | छल नहीं करता किसी से वह नहीं करता कपट।25।
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− | गालियाँ भातीं नहीं, ताने नहीं जाते सहे।
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− | आग लग जाती है कच्ची बात जो कोई कहे।
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− | देख कर नीचा किसकी आँख कब ऊँची रहे।
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− | ठोकरें खाकर भला किसी को नहीं आँसू बहे।
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− | वह समझता है न इतना घाव करती है छुरी।
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− | ठेस होती है बड़ी ही इस कलेजे की बुरी।26।
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− | देख करके तोप को जाता कलेजा है निकल।
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− | यह बुरी बंदूक रखकर जी नहीं सकता सम्हल।
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− | बरछियाँ, तलवार, भाले हैं बना देते विकल।
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− | गोलियाँ, बारूद, छर्रे, आँख करते हैं सजल।
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− | उस समय तो और भी उसका तड़पता है जिगर।
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− | जब समझता है कि इनमें है भरी जी की कसर।27।
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− | क्यों बहाने को लहू हथियार सब जाते गढ़े।
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− | दूसरों पर दूसरे फिर किसलिए जाते चढ़े।
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− | किसलिए रणपोत, बनते और वे जाते मढ़े।
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− | नासमझ का काम करते किसलिए लिक्खे पढ़े।
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− | जो उसी की भाँति उठती प्यार की सब की भुजा।
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− | तो दिखाती शान्ति की सब ओर फहराती धुजा।28।
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− | पेट भरने के लिए कटता किसीका क्यों गला।
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− | एक भाई के लिए क्यों दूसरा होता बला।
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− | इस जगत में किसलिए जाता कभी कोई छला।
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− | बहु बसा घर क्यों कलह की आग में होता जला।
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− | ठीक सुन्दर नीति उसकी जो सदा होती चली।
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− | तो कटी डालें दिखातीं आज दिन फूली फली।29।
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− | है विभव किस काम का वह हो लहू जिसमें लगा।
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− | आग उस धान में लगे जिसमें हुई कुछ भी दगा।
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− | गर्व वह गिर जाय जिसका है सताना ही सगा।
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− | धूल में वह पद मिले जो है कलंकों से रँगा।
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− | वह विवश होकर सदा दुख से सुनाता है यही।
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− | वह धरा धँस जाय जिस पर हैं कभी लोथें ढही।30।
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− | यह भला है, यह बुरा है, वह समझता है सभी।
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− | भूसियों में, छोड़कर चावल नहीं फँसता कभी।
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− | जब ठिकाने है पहुँचता मोद पाता है तभी।
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− | बात थोथी है नहीं मुँह से निकलती एक भी।
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− | है जहाँ पर चूक उसकी आँख पड़ती है वहीं।
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− | जड़ पकड़ता है उलझता पत्तियों में वह नहीं।31।
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− | आदमी का ऐंठना, बढ़ना, बहकना, बोलना।
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− | रूठना, हँसना, मचलना, मुँह न अपना खोलना।
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− | संग बन जाना, कभी इन पत्तियों सा डोलना।
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− | वह समझता है तराजू पर उसे है तोलना।
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− | है उसी ने ही पढ़ी जी की लिखावट को सही।
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− | गुत्थियाँ उसकी सदा है ठीक सुलझाता वही।32।
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− | देखता अंधा नहीं, उजले न होते हैं रँगे।
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− | दौड़ता लँगड़ा नहीं, सोये नहीं होते जगे।
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− | क्यों न वह फिर रास्ते पर ठीक चलने से डगे।
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− | हैं बहुत से रोग, जिसके एक ही दिल को लगे।
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− | देखकर बिगड़ा किसी को वह नहीं करता गिला।
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− | काम की कितनी दवाएँ हैं उसे देता पिला।33।
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− | देखकर गिरते उठाता है, बिगड़ जाता नहीं।
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− | वह छुड़ाता है फँसे को, और उलझाता नहीं।
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− | राह भूले को दिखा देता है भरमाता नहीं।
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− | है बिगड़ते को बनाता, आँख दिखलाता नहीं।
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− | सर अंधेरों में भला किसका न टकराया किया।
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− | वह अँधेरा दूर करता है, जलाता है दिया।34।
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− | जीव जितने हैं जगत में, हैं उसे प्यारे बड़े।
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− | दुख उसे होता है जो तिनका कहीं उनको गड़े।
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− | एक चींटी भी कहीं जो पाँव के नीचे पड़े।
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− | तो अचानक देह के होते हैं सब रोयें खड़े।
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− | हैं छुटे उसकी दया से ये हरे पत्ते नहीं।
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− | तोड़ते इनको उसे है पीर सी होती कहीं।35।
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− | कँप उठे सब लोक पत्तो की तरह धरती हिले।
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− | राज, धान जाता रहे, पद, मान, मिट्टी में मिले।
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− | जीभ काटी जाय, फोड़ी जाय आँखें, मुँह सिले।
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− | सैकड़ों टुकड़े बदन हो, पर्त चमड़े की छिले।
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− | छोड़ सकता उस समय भी वह नहीं अपना धरम।
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− | जब हैं हर एक रोयें नोचते चिमटे गरम।36।
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− | धर्मवीरों की चले, सब लोग हो जावें भले।
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− | भाइयों से भाइयों का जी न भूले भी जले।
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− | चन्द्रमा निकले धरम का, पाप का बादल टले।
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− | हे प्रभो संसार का हर एक घर फूले फले।
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− | इस धारा पर प्यार की प्यारी सुधा सब दिन बहे।
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− | शान्ति की सब ओर सुन्दर चाँदनी छिटकी रहे।37।
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− | जीवनमुक्त
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| किसे नहीं ललना-ललामता मोहती। | | किसे नहीं ललना-ललामता मोहती। |
| विफल नहीं होता उसका टोना कहीं। | | विफल नहीं होता उसका टोना कहीं। |