भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"युग-वैषम्य / मायानन्द मिश्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मायानन्द मिश्र |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} {{K...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति 14: पंक्ति 14:
 
वंचना हमर माय थिकी
 
वंचना हमर माय थिकी
 
जे कुण्ठाक दूध छोड़ि रहली अछि।
 
जे कुण्ठाक दूध छोड़ि रहली अछि।
 +
 +
और अब यही कविता हिन्दी में पढ़ें
 +
 +
कर्ण के कवच और कुण्डल की तरह
 +
हमने अपनी सम्पूर्ण योगाकाँक्षा को
 +
दे दिया परिस्थति-विप्र को दान
 +
मेरे पिता नहीं थे द्रोणाचार्य
 +
बावजूद इसके मैं हूँ अश्वत्थामा
 +
वँचना मेरी माँ है
 +
जो कुण्ठा का दूध छोड़ रही है ।
 +
 +
अनुवाद: विनीत उत्पल
 
</poem>
 
</poem>

16:55, 31 अगस्त 2013 के समय का अवतरण

कर्णक कवच-कुंडल जकाँ
हम अपन सम्पूर्ण योगाकांक्षा
परिस्थिति-विप्रकें दान द- देल
हमर बाप द्रोणाचर्य नहि रहथि
तथापि हम अश्वत्थाम छी।
वंचना हमर माय थिकी
जे कुण्ठाक दूध छोड़ि रहली अछि।

और अब यही कविता हिन्दी में पढ़ें

कर्ण के कवच और कुण्डल की तरह
हमने अपनी सम्पूर्ण योगाकाँक्षा को
दे दिया परिस्थति-विप्र को दान
मेरे पिता नहीं थे द्रोणाचार्य
बावजूद इसके मैं हूँ अश्वत्थामा
वँचना मेरी माँ है
जो कुण्ठा का दूध छोड़ रही है ।

अनुवाद: विनीत उत्पल