"किरण / जयशंकर प्रसाद" के अवतरणों में अंतर
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किरण! तुम क्यों बिखरी हो आज, | किरण! तुम क्यों बिखरी हो आज, | ||
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रँगी हो तुम किसके अनुराग, | रँगी हो तुम किसके अनुराग, | ||
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स्वर्ण सरजित किंजल्क समान, | स्वर्ण सरजित किंजल्क समान, | ||
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उड़ाती हो परमाणु पराग। | उड़ाती हो परमाणु पराग। | ||
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धरा पर झुकी प्रार्थना सदृश, | धरा पर झुकी प्रार्थना सदृश, | ||
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मधुर मुरली-सी फिर भी मौन, | मधुर मुरली-सी फिर भी मौन, | ||
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किसी अज्ञात विश्व की विकल- | किसी अज्ञात विश्व की विकल- | ||
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वेदना-दूती सी तूम कौन? | वेदना-दूती सी तूम कौन? | ||
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अरुण शिशु के मुख पर सविलास, | अरुण शिशु के मुख पर सविलास, | ||
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सुनहली लट घुँघराली कान्त, | सुनहली लट घुँघराली कान्त, | ||
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नाचती हो जैसे तुम कौन? | नाचती हो जैसे तुम कौन? | ||
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उषा के चंचल मे अश्रान्त। | उषा के चंचल मे अश्रान्त। | ||
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भला उस भोले मुख को छोड़, | भला उस भोले मुख को छोड़, | ||
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और चूमोगी किसका भाल, | और चूमोगी किसका भाल, | ||
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मनोहर यह कैसा हैं नृत्य, | मनोहर यह कैसा हैं नृत्य, | ||
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कौन देता सम पर ताल? | कौन देता सम पर ताल? | ||
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कोकनद मधु धारा-सी तरल, | कोकनद मधु धारा-सी तरल, | ||
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विश्व में बहती हो किस ओर? | विश्व में बहती हो किस ओर? | ||
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प्रकृति को देती परमानन्द, | प्रकृति को देती परमानन्द, | ||
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उठाकर सुन्दर सरस हिलोर। | उठाकर सुन्दर सरस हिलोर। | ||
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स्वर्ग के सूत्र सदृश तुम कौन, | स्वर्ग के सूत्र सदृश तुम कौन, | ||
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मिलाती हो उससे भूलोक? | मिलाती हो उससे भूलोक? | ||
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जोड़ती हो कैसा सम्बन्ध, | जोड़ती हो कैसा सम्बन्ध, | ||
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बना दोगी क्या विरज विशोक! | बना दोगी क्या विरज विशोक! | ||
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सुदिनमणि-वलय विभूषित उषा- | सुदिनमणि-वलय विभूषित उषा- | ||
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सुन्दरी के कर का संकेत- | सुन्दरी के कर का संकेत- | ||
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कर रही हो तुम किसको मधुर, | कर रही हो तुम किसको मधुर, | ||
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किसे दिखलाती प्रेम-निकेत? | किसे दिखलाती प्रेम-निकेत? | ||
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चपल! ठहरो कुछ लो विश्राम, | चपल! ठहरो कुछ लो विश्राम, | ||
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चल चुकी हो पथ शून्य अनन्त, | चल चुकी हो पथ शून्य अनन्त, | ||
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सुमनमन्दिर के खोलो द्वार, | सुमनमन्दिर के खोलो द्वार, | ||
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जगे फिर सोया वहाँ वसन्त। | जगे फिर सोया वहाँ वसन्त। | ||
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00:19, 20 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
किरण! तुम क्यों बिखरी हो आज,
रँगी हो तुम किसके अनुराग,
स्वर्ण सरजित किंजल्क समान,
उड़ाती हो परमाणु पराग।
धरा पर झुकी प्रार्थना सदृश,
मधुर मुरली-सी फिर भी मौन,
किसी अज्ञात विश्व की विकल-
वेदना-दूती सी तूम कौन?
अरुण शिशु के मुख पर सविलास,
सुनहली लट घुँघराली कान्त,
नाचती हो जैसे तुम कौन?
उषा के चंचल मे अश्रान्त।
भला उस भोले मुख को छोड़,
और चूमोगी किसका भाल,
मनोहर यह कैसा हैं नृत्य,
कौन देता सम पर ताल?
कोकनद मधु धारा-सी तरल,
विश्व में बहती हो किस ओर?
प्रकृति को देती परमानन्द,
उठाकर सुन्दर सरस हिलोर।
स्वर्ग के सूत्र सदृश तुम कौन,
मिलाती हो उससे भूलोक?
जोड़ती हो कैसा सम्बन्ध,
बना दोगी क्या विरज विशोक!
सुदिनमणि-वलय विभूषित उषा-
सुन्दरी के कर का संकेत-
कर रही हो तुम किसको मधुर,
किसे दिखलाती प्रेम-निकेत?
चपल! ठहरो कुछ लो विश्राम,
चल चुकी हो पथ शून्य अनन्त,
सुमनमन्दिर के खोलो द्वार,
जगे फिर सोया वहाँ वसन्त।