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"होली की रात / जयशंकर प्रसाद" के अवतरणों में अंतर

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बरसते हो तारों के फूल
 
बरसते हो तारों के फूल
 
 
छिपे तुम नील पटी में कौन?
 
छिपे तुम नील पटी में कौन?
 
 
उड़ रही है सौरभ की धूल
 
उड़ रही है सौरभ की धूल
 
 
कोकिला कैसे रहती मीन।
 
कोकिला कैसे रहती मीन।
 
 
  
 
चाँदनी धुली हुई हैं आज
 
चाँदनी धुली हुई हैं आज
 
 
बिछलते है तितली के पंख।
 
बिछलते है तितली के पंख।
 
 
सम्हलकर, मिलकर बजते साज
 
सम्हलकर, मिलकर बजते साज
 
 
मधुर उठती हैं तान असंख।
 
मधुर उठती हैं तान असंख।
 
  
 
तरल हीरक लहराता शान्त
 
तरल हीरक लहराता शान्त
 
 
सरल आशा-सा पूरित ताल।
 
सरल आशा-सा पूरित ताल।
 
 
सिताबी छिड़क रहा विधु कान्त
 
सिताबी छिड़क रहा विधु कान्त
 
 
बिछा हैं सेज कमलिनी जाल।
 
बिछा हैं सेज कमलिनी जाल।
 
  
 
पिये, गाते मनमाने गीत
 
पिये, गाते मनमाने गीत
 
 
टोलियों मधुपों की अविराम।
 
टोलियों मधुपों की अविराम।
 
 
चली आती, कर रहीं अभीत
 
चली आती, कर रहीं अभीत
 
 
कुमुद पर बरजोरी विश्राम।
 
कुमुद पर बरजोरी विश्राम।
 
  
 
उड़ा दो मत गुलाल-सी हाय
 
उड़ा दो मत गुलाल-सी हाय
 
 
अरे अभिलाषाओं की धूल।
 
अरे अभिलाषाओं की धूल।
 
 
और ही रंग नही लग लाय
 
और ही रंग नही लग लाय
 
 
मधुर मंजरियाँ जावें झूल।
 
मधुर मंजरियाँ जावें झूल।
 
  
 
विश्व में ऐसा शीतल खेल
 
विश्व में ऐसा शीतल खेल
 
 
हृदय में जलन रहे, क्या हात!
 
हृदय में जलन रहे, क्या हात!
 
 
स्नेह से जलती ज्वाला झेल
 
स्नेह से जलती ज्वाला झेल
 
 
बना ली हाँ, होली की रात॥
 
बना ली हाँ, होली की रात॥
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00:27, 20 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण

बरसते हो तारों के फूल
छिपे तुम नील पटी में कौन?
उड़ रही है सौरभ की धूल
कोकिला कैसे रहती मीन।

चाँदनी धुली हुई हैं आज
बिछलते है तितली के पंख।
सम्हलकर, मिलकर बजते साज
मधुर उठती हैं तान असंख।

तरल हीरक लहराता शान्त
सरल आशा-सा पूरित ताल।
सिताबी छिड़क रहा विधु कान्त
बिछा हैं सेज कमलिनी जाल।

पिये, गाते मनमाने गीत
टोलियों मधुपों की अविराम।
चली आती, कर रहीं अभीत
कुमुद पर बरजोरी विश्राम।

उड़ा दो मत गुलाल-सी हाय
अरे अभिलाषाओं की धूल।
और ही रंग नही लग लाय
मधुर मंजरियाँ जावें झूल।

विश्व में ऐसा शीतल खेल
हृदय में जलन रहे, क्या हात!
स्नेह से जलती ज्वाला झेल
बना ली हाँ, होली की रात॥