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"इंतिकाम / नून मीम राशिद" के अवतरणों में अंतर
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| − | + | उस का चेहरा उस के ख़द्द-ओ-ख़ाल याद आते नहीं | |
| − | + | इक शबिस्ताँ याद है | |
| − | + | इक बरहना जिस्म आतिश-दाँ के पास | |
| − | + | फ़र्श पर क़ालीन क़ालीनों पे सेज | |
| − | + | धात और पत्थर के बुत | |
| − | + | गोश-ए-दीवार में हँसते हुए ! | |
| − | + | और आतिश-दाँ में अँगारों का शोर | |
| − | + | उन बुतों की बे-हिसी पर ख़श्मीं | |
| − | + | उजली उजली ऊँची दीवारों पे अक्स | |
| − | + | उन फरींग हाकिमों की याद-गार | |
| − | + | जिन की तलवारों ने रक्खा था यहाँ | |
| − | + | संग-ए-बुनियाद-ए-फरंग ! | |
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| − | + | उस का चेहरा उस के ख़द्द-ओ-ख़ाल याद आते नहीं | |
| − | + | इक बरहना जिस्म अब तक याद है | |
| − | + | अजनबी औरत का जिस्म | |
| − | + | मेरे होंटो ने लिया था रात भर | |
| + | जिस से अर्बाब-ए-वतन की बे-किसी का इंतिक़ाम  | ||
| + | वो बरहना जिस्म अब तक याद है ! | ||
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16:23, 29 जून 2013 के समय का अवतरण
उस का चेहरा उस के ख़द्द-ओ-ख़ाल याद आते नहीं
इक शबिस्ताँ याद है
इक बरहना जिस्म आतिश-दाँ के पास
फ़र्श पर क़ालीन क़ालीनों पे सेज
धात और पत्थर के बुत
गोश-ए-दीवार में हँसते हुए !
और आतिश-दाँ में अँगारों का शोर
उन बुतों की बे-हिसी पर ख़श्मीं
उजली उजली ऊँची दीवारों पे अक्स
उन फरींग हाकिमों की याद-गार
जिन की तलवारों ने रक्खा था यहाँ
संग-ए-बुनियाद-ए-फरंग !
उस का चेहरा उस के ख़द्द-ओ-ख़ाल याद आते नहीं
इक बरहना जिस्म अब तक याद है
अजनबी औरत का जिस्म
मेरे होंटो ने लिया था रात भर
जिस से अर्बाब-ए-वतन की बे-किसी का इंतिक़ाम 
वो बरहना जिस्म अब तक याद है !
 
	
	

