भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हैरतों के सिल-सिले / अहमद नदीम क़ासमी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अहमद नदीम काज़मी }} हैरतों के सिल-सिले सोज़-ए-निहां तक आ...) |
|||
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार=अहमद नदीम | + | |रचनाकार=अहमद नदीम क़ासमी |
+ | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
+ | [[Category:ग़ज़ल]] | ||
+ | <poem> | ||
+ | हैरतों के सिल-सिले सोज़-ए-निहां तक आ गए | ||
+ | हम तो दिल तक चाहते थे तुम तो जाँ तक आ गए | ||
− | + | ज़ुल्फ़ में ख़ुश्बू न थी या रंग आरिज़ में न था | |
− | + | आप किस की जुस्तजू में गुलिस्तां तक आ गए | |
− | + | ख़ुद तुम्हें चाक-ए-गिरेबां का शऊर आ जाएगा | |
− | + | तुम वहां तक आ तो जाओ हम जहां तक आ गए | |
− | + | उन की पलकों पे सितारे अपने होंठों पे हंसी | |
− | + | कि़स्सा-ए-ग़म कहते कहते हम यहां तक आ गए | |
− | + | </poem> | |
− | उन की पलकों पे सितारे अपने होंठों पे हंसी | + | |
− | कि़स्सा-ए-ग़म कहते कहते हम यहां तक आ गए< | + |
19:44, 8 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
हैरतों के सिल-सिले सोज़-ए-निहां तक आ गए
हम तो दिल तक चाहते थे तुम तो जाँ तक आ गए
ज़ुल्फ़ में ख़ुश्बू न थी या रंग आरिज़ में न था
आप किस की जुस्तजू में गुलिस्तां तक आ गए
ख़ुद तुम्हें चाक-ए-गिरेबां का शऊर आ जाएगा
तुम वहां तक आ तो जाओ हम जहां तक आ गए
उन की पलकों पे सितारे अपने होंठों पे हंसी
कि़स्सा-ए-ग़म कहते कहते हम यहां तक आ गए