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18:59, 31 मार्च 2011 के समय का अवतरण
रात भर चुप-चुप
रोती रही रात
दिन भर टिप-टिप
सिसकता रहा दिन
बिजली के तार
पेड़-पौधे और मकान
सब के सब फूट-फूट कर रोते रहे
नगर भर को आंसुओं में भिगोते रहे
रोते रहे, डुबोते रहे
(रचनाकाल : 1982)