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"न चाहूं मान / राम प्रसाद बिस्मिल" के अवतरणों में अंतर

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चाहूं मान दुनिया में, न चाहूं स्वर्ग को जाना ।<br>
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मुझे वर दे यही माता रहूँ भारत पे दीवाना
  
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करुँ मैं कौम की सेवा पडे़ चाहे करोड़ों दुख
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अगर फ़िर जन्म लूँ आकर तो भारत में ही हो आना
  
करुं मैं कौम की सेवा पडे चाहे करोडों दुख ।<br>
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लगा रहे प्रेम हिन्दी में, पढूँ हिन्दी लिखुँ हिन्दी
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चलन हिन्दी चलूँ, हिन्दी पहरना, ओढना खाना
  
अगर फ़िर जन्म लूं आकर तो भारत में ही हो आना ।<br>
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भवन में रोशनी मेरे रहे हिन्दी चिरागों की
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स्वदेशी ही रहे बाजा, बजाना, राग का गाना
  
लगा रहे प्रेम हिन्दी में, पढूं हिन्दी लिखुं हिन्दी ।<br>
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लगें इस देश के ही अर्थ मेरे धर्म, विद्या, धन
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करुँ मैं प्राण तक अर्पण यही प्रण सत्य है ठाना
  
चलन हिन्दी चलूं, हिन्दी पहरना, ओढना खाना ।<br>
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नहीं कुछ गैर-मुमकिन है जो चाहो दिल से "बिस्मिल" तुम
 
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उठा लो देश हाथों पर न समझो अपना बेगाना</poem>
भवन में रोशनी मेरे रहे हिन्दी चिरागों की ।<br>
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स्वदेशी ही रहे बाजा, बजाना, राग का गाना ।<br>
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नहीं कुछ गैर-मुमकिन है जो चाहो दिल से "बिस्मिल" तुम<br>
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उठा लो देश हाथों पर न समझो अपना बेगाना ।।<br>
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07:52, 24 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण

न चाहूँ मान दुनिया में, न चाहूँ स्वर्ग को जाना
मुझे वर दे यही माता रहूँ भारत पे दीवाना

करुँ मैं कौम की सेवा पडे़ चाहे करोड़ों दुख
अगर फ़िर जन्म लूँ आकर तो भारत में ही हो आना

लगा रहे प्रेम हिन्दी में, पढूँ हिन्दी लिखुँ हिन्दी
चलन हिन्दी चलूँ, हिन्दी पहरना, ओढना खाना

भवन में रोशनी मेरे रहे हिन्दी चिरागों की
स्वदेशी ही रहे बाजा, बजाना, राग का गाना

लगें इस देश के ही अर्थ मेरे धर्म, विद्या, धन
करुँ मैं प्राण तक अर्पण यही प्रण सत्य है ठाना

नहीं कुछ गैर-मुमकिन है जो चाहो दिल से "बिस्मिल" तुम
उठा लो देश हाथों पर न समझो अपना बेगाना