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"धूप के धान / अचल वाजपेयी" के अवतरणों में अंतर
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23:59, 31 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
तुम जो धूप में
धान बोते हुए
गर्व से निकल गए
पीछे मुड़ो और देखो
तुम कीच भरे पानी में
गहरे धँस चुके हो
और धान
उन्हें धूप ने
एक काले रजिस्टर पर
टाँक दिया है