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"कुकुरमुत्ता / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" के अवतरणों में अंतर

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[[कुकुरमुत्ता / निराला ]]
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|रचनाकार=सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
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* [[कुकुरमुत्ता (कविता) / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"]]
आया मौसम खिला फ़ारस का गुलाब,
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बाग पर उसका जमा था रोबोदाब
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वहीं गंदे पर उगा देता हुआ बुत्ता
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उठाकर सर शिखर से अकडकर बोला कुकुरमुत्ता
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अबे,सुन बे गुलाब
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भूल मत जो पाई खुशबू,रंगोआब,
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खून चूसा खाद का तूने अशिष्ट,
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डाल पर इतरा रहा है कैपिटलिस्ट;
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बहुतों को तूने बनाया है गुलाम,
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माली कर रक्खा,खिलाया जाडा घाम;
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हाथ जिसके तू लगा,
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पैर सर पर रखकर वह पीछे को भगा,
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जानिब औरत के लडाई छोडकर,
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टट्टू जैसे तबेले को तोडकर।
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शाहों,राजों,अमीरों का रहा प्यारा,
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इसलिए साधारणों से रहा न्यारा,
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वरना क्या हस्ती है तेरी,पोच तू;
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काँटों से भरा है,यह सोच तू;
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लाली जो अभी चटकी
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सूखकर कभी काँटा हुई होती,
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घडों पडता रहा पानी,
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तू हरामी खानदानी।
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चाहिये तूझको सदा मेहरुन्निशा
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जो निकले इत्रोरुह एसी दिसा
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बहाकर ले चले लोगों को ,नहीं कोई किनारा,
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जहाँ अपना नही कोई सहारा,
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ख्वाब मे डूबा चमकता हो सितारा,
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पेट मे डंड पेलते चूहे ,जबाँ पर लफ़्ज प्यारा।
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देख मुझको मै बढा,
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डेढ बालिश्त और उँचे पर चढा,
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और अपने से उगा मै,
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नही दाना पर चुगा मै,
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कल्म मेरा नही लगता,
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मेरा जीवन आप जगता,
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तू है नकली,मै हूँ मौलिक,
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तू है बकरा,मै हूँ कौलिक,
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तू रंगा ,और मै धुला,
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पानी मै तु बुलबुला,
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तूने दुनिया को बिगाडा,
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मैने गिरते से उभाडा,
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तूने जनखा बनाया,रोटियाँ छीनी,
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मैने उनको एक की दो तीन दी।
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चीन मे मेरी नकल छाता बना,
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छत्र भारत का वहाँ कैसा तना;
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हर जगह तू देख ले,
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आज का यह रूप पैराशूट ले।
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विष्णु का मै ही सुदर्शन चक्र हूँ,
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काम दुनिया मे पडा ज्यों, वक्र हूँ,
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उलट दे, मै ही जसोदा की मथानी,
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और भी लम्बी कहानी,
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सामने ला कर मुझे बैंडा,देख कैंडा,
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तीर से खींचा धनुष मै राम का,
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काम का
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पडा कंधे पर हूँ हल बलराम का;
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सुबह का सूरज हूँ मै ही,
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चाँद मै ही शाम का ;
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नही मेरे हाड,काँटे, काठ या
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नही मेरा बदन आठोगाँठ का।
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रस ही रस मेरा रहा,
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इस सफ़ेदी को जहन्नुम रो गया।
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दुनिया मे सभी ने मुझ से रस चुराया,
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रस मे मै डुबा उतराया।
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मुझी मे गोते लगाये आदिकवि ने,व्यास ने,
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मुझी से पोथे निकाले भास-कालिदास ने
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देखते रह गये मेरे किनारे पर खडे
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हाफ़िज़ और टैगोर जैसे विश्ववेत्ता जो बडे।
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कही का रोडा,कही का लिया पत्थर
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टी.एस.ईलियट ने जैसे दे मारा,
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पढने वालो ने जिगर पर हाथ रखकर
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कहा कैसा लिख दिया संसार सारा,
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देखने के लिये आँखे दबाकर
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जैसे संध्या को किसी ने देखा तारा,
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जैसे प्रोग्रेसीव का लेखनी लेते
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नही रोका रुकता जोश का पारा
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यहीं से यह सब हुआ
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जैसे अम्मा से बुआ ।
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19:36, 6 जून 2008 के समय का अवतरण


कुकुरमुत्ता
Kukurmuttaa.jpg
रचनाकार सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
प्रकाशक लोकभारती प्रकाशन
वर्ष
भाषा हिन्दी
विषय कविताएँ
विधा
पृष्ठ 71
ISBN
विविध
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।