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मैं ! / अज़ीज़ क़ैसी

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नक़्श कहा करते हैं ऐसे बन सकते हो
ज़र्रे कहते हैं तुम ऐसे बन जाओगे
 
तुम बतला सकते हो आख़िर मैं क्या हूँ
तुम क्या बतलाओगे
तुम ख़ुद आईना-ख़ाना हो
ग़म-ख़ाना हो
घर हो
क़ब्र हो
तुम ख़ुद मैं हो
</poem>
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