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"जागते रहो / भारत भूषण अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर

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डूबता दिन, भीगती-सी शाम
 
डूबता दिन, भीगती-सी शाम
बन्द कर दो कान,
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बन्द कर दो काम,
 
लो विश्राम ।
 
लो विश्राम ।
  

01:56, 6 जनवरी 2014 के समय का अवतरण

डूबता दिन, भीगती-सी शाम
बन्द कर दो काम,
लो विश्राम ।

यह तिमिर की शाल
ओढ़ लो वसुधे ! न सिकुड़े शीत से यह लाल,
जग का बाल ।

वलय की खनकार,
दीप बालो री सुहागिनी ! जग उठे गृह-द्वार
बन्दनवार !

किन्तु साथी ! देख
हम न सोएँगे, हमारा कार्य है अवशिष्ट
अपनी प्रगति का अब भी अधूरा लेख ।
जागरण, फिर जागरण ही है हमारा इष्ट !

लो, क्षितिज के पास --
वह उठा तारा, अरे ! वह लाल तारा, नयन का तारा हमारा
सर्वहारा का सहारा
विजय का विश्वास ।