"सजीवन जड़ी / हरिऔध" के अवतरणों में अंतर
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ |अ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) |
||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | दुख बने वह अजब नशा जिस में। | |
− | + | ||
मौत का रूप रंग ही भावे। | मौत का रूप रंग ही भावे। | ||
− | |||
जाति-हित के लिए मरें हँसते। | जाति-हित के लिए मरें हँसते। | ||
− | |||
आह निकले न, दम निकल जावे। | आह निकले न, दम निकल जावे। | ||
काम लेते जो विचारों से रहे। | काम लेते जो विचारों से रहे। | ||
− | |||
हाथ वे बेसमझियों के कब बिके। | हाथ वे बेसमझियों के कब बिके। | ||
− | |||
जो छिंके जी की कचाई से नहीं। | जो छिंके जी की कचाई से नहीं। | ||
+ | छेंकने से छीेंक के वे कब छिंके। | ||
− | + | हौसलेवाले हिचकते ही नहीं। | |
− | + | ||
− | हौसलेवाले | + | |
− | + | ||
राह चाहे ठीक या बेठीक हो। | राह चाहे ठीक या बेठीक हो। | ||
− | |||
हो सगुन या काम असगुन से पड़े। | हो सगुन या काम असगुन से पड़े। | ||
− | |||
दाहिने हो या कि बायें छींक हो। | दाहिने हो या कि बायें छींक हो। | ||
− | पड़ गये हो | + | पड़ गये हो उधेड़बुन में क्यों। |
− | + | ||
तुम गये बार बार बीछे हो। | तुम गये बार बार बीछे हो। | ||
− | |||
कब सके बीर पाँव पीछे रख। | कब सके बीर पाँव पीछे रख। | ||
− | |||
सैकड़ों छींक क्यों न पीछे हो। | सैकड़ों छींक क्यों न पीछे हो। | ||
करतबी की देख नाकाबंदियाँ। | करतबी की देख नाकाबंदियाँ। | ||
− | |||
छक गई सी है निकल पाती नहीं। | छक गई सी है निकल पाती नहीं। | ||
− | |||
छींकनेवाले करें तो क्या करें। | छींकनेवाले करें तो क्या करें। | ||
− | |||
छींकते हैं छींक ही आती नहीं। | छींकते हैं छींक ही आती नहीं। | ||
दूर अंधाधुंधा जिस से हो सके। | दूर अंधाधुंधा जिस से हो सके। | ||
− | + | बाँध कर के धुन वही धंधा करें। | |
− | + | ||
− | + | ||
जाति की औ देस की सेवा सदा। | जाति की औ देस की सेवा सदा। | ||
− | |||
लोग कंधो से मिला कंधा करें। | लोग कंधो से मिला कंधा करें। | ||
बीज जब थे बिगाड़ का बोते। | बीज जब थे बिगाड़ का बोते। | ||
− | |||
किस तरह प्यार बेलि उग पाती। | किस तरह प्यार बेलि उग पाती। | ||
− | |||
जब कि हम बात बात में बिगड़े। | जब कि हम बात बात में बिगड़े। | ||
+ | बात कैसे न तब बिगड़ जाती। | ||
− | + | जब मनाना ही हमें आता नहीं। | |
− | + | ||
− | जब | + | |
− | + | ||
तब सकेंगे किस तरह से हम मना। | तब सकेंगे किस तरह से हम मना। | ||
− | |||
कब भला बनती किसी से है बने। | कब भला बनती किसी से है बने। | ||
− | |||
बात बनती ही नहीं बातें बना। | बात बनती ही नहीं बातें बना। | ||
मान, जिनका मान रखकर के मिला। | मान, जिनका मान रखकर के मिला। | ||
− | |||
मत बिगाड़ो मान का उन के धुरा। | मत बिगाड़ो मान का उन के धुरा। | ||
− | |||
है बिना हारे हराना आप को। | है बिना हारे हराना आप को। | ||
− | |||
है बड़ों की बात दोहराना बुरा। | है बड़ों की बात दोहराना बुरा। | ||
तब बखेड़े किस तरह उठते नहीं। | तब बखेड़े किस तरह उठते नहीं। | ||
− | |||
जब बखेड़ों का रहा जी में न डर। | जब बखेड़ों का रहा जी में न डर। | ||
− | + | बात तब कैसे भला बढ़ती नहीं। | |
− | बात तब | + | |
− | + | ||
बात बढ़ बढ़ कर, रहे करते अगर। | बात बढ़ बढ़ कर, रहे करते अगर। | ||
क्यों नहीं तब जायगा कोई उखड़। | क्यों नहीं तब जायगा कोई उखड़। | ||
− | |||
बात हम उखड़ी हुई जब कहेंगे। | बात हम उखड़ी हुई जब कहेंगे। | ||
− | + | रिस लहर कैसे न तब बढ़ जायगी। | |
− | रिस लहर | + | |
− | + | ||
बात को जब हम बढ़ाते रहेंगे। | बात को जब हम बढ़ाते रहेंगे। | ||
है बहुत वाजिब बहुत ही ठीक है। | है बहुत वाजिब बहुत ही ठीक है। | ||
− | |||
बाँट में बेढंग के जो पड़ गई। | बाँट में बेढंग के जो पड़ गई। | ||
− | |||
तब भला वह किस तरह जी में जमे। | तब भला वह किस तरह जी में जमे। | ||
− | |||
जब बताई बात ही बेजड़ गई। | जब बताई बात ही बेजड़ गई। | ||
− | तो उछल | + | तो उछल कूद क्या रहे करते। |
− | + | ||
जो किया छोड़ छल न देस भला। | जो किया छोड़ छल न देस भला। | ||
− | |||
सब बला टाल देस के सिर की। | सब बला टाल देस के सिर की। | ||
− | + | जो कलेजा न बल्लियों उछला। | |
− | जो कलेजा न | + | |
जाति-हित की अगर लगी लौ है। | जाति-हित की अगर लगी लौ है। | ||
− | |||
तो करें काम बेबहा हाथों। | तो करें काम बेबहा हाथों। | ||
− | |||
हौसला हो छलक रहा दिल में। | हौसला हो छलक रहा दिल में। | ||
− | |||
हो कलेजा उछल रहा हाथों। | हो कलेजा उछल रहा हाथों। | ||
लोक-हित में कब लगे जी जान से। | लोक-हित में कब लगे जी जान से। | ||
− | |||
कब लगा प्यारा न परहित से टका। | कब लगा प्यारा न परहित से टका। | ||
− | |||
देस सुख मुख देख कमलों सा खिला। | देस सुख मुख देख कमलों सा खिला। | ||
− | |||
कब कलेजा है उछल बाँसों सका। | कब कलेजा है उछल बाँसों सका। | ||
हो भला, वह हो भलाई से भरा। | हो भला, वह हो भलाई से भरा। | ||
− | |||
भाव जो जी में जगाने से जगे। | भाव जो जी में जगाने से जगे। | ||
− | |||
जातिहित जनहित जगतहित में उमग। | जातिहित जनहित जगतहित में उमग। | ||
− | |||
जी लगायें जो लगाने से लगे। | जी लगायें जो लगाने से लगे। | ||
क्यों सितम पर सितम न हो हम पर। | क्यों सितम पर सितम न हो हम पर। | ||
− | |||
क्यों बला पर बला न आ जाये। | क्यों बला पर बला न आ जाये। | ||
− | |||
घेर घबराहटें न लें हम को। | घेर घबराहटें न लें हम को। | ||
− | |||
जी हमारा न नेक घबराये। | जी हमारा न नेक घबराये। | ||
क्या नहीं हाथ पाँव हम रखते। | क्या नहीं हाथ पाँव हम रखते। | ||
− | |||
एक बेपीर क्यों हमें पीसे। | एक बेपीर क्यों हमें पीसे। | ||
− | |||
फिर हमें जो लगी तो क्या। | फिर हमें जो लगी तो क्या। | ||
− | |||
आज भी जो लगी नहीं जी से। | आज भी जो लगी नहीं जी से। | ||
जी ठिकाने है अगर रहता नहीं। | जी ठिकाने है अगर रहता नहीं। | ||
− | |||
चुटकियों पर तो मुहिम होगी न सर। | चुटकियों पर तो मुहिम होगी न सर। | ||
− | |||
तो उड़ेंगे फूँक से दुखड़े नहीं। | तो उड़ेंगे फूँक से दुखड़े नहीं। | ||
− | |||
जी हमारा है उड़ा रहता अगर। | जी हमारा है उड़ा रहता अगर। | ||
सूरमा साहस दिखा कर सौगुना। | सूरमा साहस दिखा कर सौगुना। | ||
− | |||
कौन सा पाला नहीं है मारता। | कौन सा पाला नहीं है मारता। | ||
− | |||
तो हरायें भूलकर उस को न हम। | तो हरायें भूलकर उस को न हम। | ||
− | |||
जी हराये ही अगर है हारता। | जी हराये ही अगर है हारता। | ||
चोचलों की चली नहीं सब दिन। | चोचलों की चली नहीं सब दिन। | ||
− | |||
काम का ही जहान है खोजी। | काम का ही जहान है खोजी। | ||
− | |||
अब नहीं लाड़ प्यार के दिन हैं। | अब नहीं लाड़ प्यार के दिन हैं। | ||
− | |||
जी लड़ायें लड़ा सकें जो जी। | जी लड़ायें लड़ा सकें जो जी। | ||
है अगर आगे निकलना चाहता। | है अगर आगे निकलना चाहता। | ||
− | |||
तो किसे पीछे नहीं है छोड़ता। | तो किसे पीछे नहीं है छोड़ता। | ||
− | |||
देख लेवें लोग दौड़ा कर उसे। | देख लेवें लोग दौड़ा कर उसे। | ||
− | |||
दौड़ने पर जी बहुत है दौड़ता। | दौड़ने पर जी बहुत है दौड़ता। | ||
धीर होते कभी अधीर नहीं। | धीर होते कभी अधीर नहीं। | ||
− | |||
क्यों न सिर बिपत बितान तने। | क्यों न सिर बिपत बितान तने। | ||
− | |||
हाथ का आँवला न है अवसर। | हाथ का आँवला न है अवसर। | ||
− | |||
बावला मन उतावला न बने। | बावला मन उतावला न बने। | ||
काम से मोड़ें न मुँह, तोड़ें न दम। | काम से मोड़ें न मुँह, तोड़ें न दम। | ||
− | |||
चाम तन का क्यों न छन छन परछिले। | चाम तन का क्यों न छन छन परछिले। | ||
− | |||
हिल गये दिल भी न, हिलना चाहिए। | हिल गये दिल भी न, हिलना चाहिए। | ||
− | |||
जाँय हिल क्यों पेट का पानी हिले। | जाँय हिल क्यों पेट का पानी हिले। | ||
जो गिरें टूट टूट तन रोयें। | जो गिरें टूट टूट तन रोयें। | ||
− | |||
जग उठें और जाति जय बोलें। | जग उठें और जाति जय बोलें। | ||
− | |||
बन अमर देस-हित रहें करते। | बन अमर देस-हित रहें करते। | ||
− | |||
मर मिटें पर कमर न हम खोलें। | मर मिटें पर कमर न हम खोलें। | ||
− | फूट घर में न | + | फूट घर में न फ़ैलने पावे। |
− | + | ||
फूट कर भी न आँख फूट सके। | फूट कर भी न आँख फूट सके। | ||
− | |||
टूट में जाय पड़ नहीं कोई। | टूट में जाय पड़ नहीं कोई। | ||
− | |||
टूट कर भी कमर न टूट सके। | टूट कर भी कमर न टूट सके। | ||
सब दिनों दुख पीसता जिन को रहा। | सब दिनों दुख पीसता जिन को रहा। | ||
− | |||
मुँह पराया ताककर ही वे पिसे। | मुँह पराया ताककर ही वे पिसे। | ||
− | |||
वह कमाई कर कभी हारा नहीं। | वह कमाई कर कभी हारा नहीं। | ||
− | |||
जाँघ का अपनी सहारा है जिसे। | जाँघ का अपनी सहारा है जिसे। | ||
वह जिसे सामने सदा लाई। | वह जिसे सामने सदा लाई। | ||
− | |||
है नहीं अंत उस समाई का। | है नहीं अंत उस समाई का। | ||
− | |||
नाम कर काम का बना देना। | नाम कर काम का बना देना। | ||
− | |||
काम है जाँघ की कमाई का। | काम है जाँघ की कमाई का। | ||
जी लगा काम औ कमाई कर। | जी लगा काम औ कमाई कर। | ||
− | |||
हो गये कामयाब माहिर सब। | हो गये कामयाब माहिर सब। | ||
− | |||
हैं जवाहिर न जौहरी के घर। | हैं जवाहिर न जौहरी के घर। | ||
− | |||
जाँघ में हैं भरे जवाहिर सब। | जाँघ में हैं भरे जवाहिर सब। | ||
छल कपट के हाथ से छूटे रहें। | छल कपट के हाथ से छूटे रहें। | ||
− | + | पाँव मेरे तो कहीं कैसे छिकें। | |
− | पाँव मेरे तो कहीं | + | |
− | + | ||
कर न दें तलबेलियाँ बेकार तो। | कर न दें तलबेलियाँ बेकार तो। | ||
− | |||
धार पर तलवार की तलवे टिकें। | धार पर तलवार की तलवे टिकें। | ||
</poem> | </poem> |
09:54, 20 मार्च 2014 के समय का अवतरण
दुख बने वह अजब नशा जिस में।
मौत का रूप रंग ही भावे।
जाति-हित के लिए मरें हँसते।
आह निकले न, दम निकल जावे।
काम लेते जो विचारों से रहे।
हाथ वे बेसमझियों के कब बिके।
जो छिंके जी की कचाई से नहीं।
छेंकने से छीेंक के वे कब छिंके।
हौसलेवाले हिचकते ही नहीं।
राह चाहे ठीक या बेठीक हो।
हो सगुन या काम असगुन से पड़े।
दाहिने हो या कि बायें छींक हो।
पड़ गये हो उधेड़बुन में क्यों।
तुम गये बार बार बीछे हो।
कब सके बीर पाँव पीछे रख।
सैकड़ों छींक क्यों न पीछे हो।
करतबी की देख नाकाबंदियाँ।
छक गई सी है निकल पाती नहीं।
छींकनेवाले करें तो क्या करें।
छींकते हैं छींक ही आती नहीं।
दूर अंधाधुंधा जिस से हो सके।
बाँध कर के धुन वही धंधा करें।
जाति की औ देस की सेवा सदा।
लोग कंधो से मिला कंधा करें।
बीज जब थे बिगाड़ का बोते।
किस तरह प्यार बेलि उग पाती।
जब कि हम बात बात में बिगड़े।
बात कैसे न तब बिगड़ जाती।
जब मनाना ही हमें आता नहीं।
तब सकेंगे किस तरह से हम मना।
कब भला बनती किसी से है बने।
बात बनती ही नहीं बातें बना।
मान, जिनका मान रखकर के मिला।
मत बिगाड़ो मान का उन के धुरा।
है बिना हारे हराना आप को।
है बड़ों की बात दोहराना बुरा।
तब बखेड़े किस तरह उठते नहीं।
जब बखेड़ों का रहा जी में न डर।
बात तब कैसे भला बढ़ती नहीं।
बात बढ़ बढ़ कर, रहे करते अगर।
क्यों नहीं तब जायगा कोई उखड़।
बात हम उखड़ी हुई जब कहेंगे।
रिस लहर कैसे न तब बढ़ जायगी।
बात को जब हम बढ़ाते रहेंगे।
है बहुत वाजिब बहुत ही ठीक है।
बाँट में बेढंग के जो पड़ गई।
तब भला वह किस तरह जी में जमे।
जब बताई बात ही बेजड़ गई।
तो उछल कूद क्या रहे करते।
जो किया छोड़ छल न देस भला।
सब बला टाल देस के सिर की।
जो कलेजा न बल्लियों उछला।
जाति-हित की अगर लगी लौ है।
तो करें काम बेबहा हाथों।
हौसला हो छलक रहा दिल में।
हो कलेजा उछल रहा हाथों।
लोक-हित में कब लगे जी जान से।
कब लगा प्यारा न परहित से टका।
देस सुख मुख देख कमलों सा खिला।
कब कलेजा है उछल बाँसों सका।
हो भला, वह हो भलाई से भरा।
भाव जो जी में जगाने से जगे।
जातिहित जनहित जगतहित में उमग।
जी लगायें जो लगाने से लगे।
क्यों सितम पर सितम न हो हम पर।
क्यों बला पर बला न आ जाये।
घेर घबराहटें न लें हम को।
जी हमारा न नेक घबराये।
क्या नहीं हाथ पाँव हम रखते।
एक बेपीर क्यों हमें पीसे।
फिर हमें जो लगी तो क्या।
आज भी जो लगी नहीं जी से।
जी ठिकाने है अगर रहता नहीं।
चुटकियों पर तो मुहिम होगी न सर।
तो उड़ेंगे फूँक से दुखड़े नहीं।
जी हमारा है उड़ा रहता अगर।
सूरमा साहस दिखा कर सौगुना।
कौन सा पाला नहीं है मारता।
तो हरायें भूलकर उस को न हम।
जी हराये ही अगर है हारता।
चोचलों की चली नहीं सब दिन।
काम का ही जहान है खोजी।
अब नहीं लाड़ प्यार के दिन हैं।
जी लड़ायें लड़ा सकें जो जी।
है अगर आगे निकलना चाहता।
तो किसे पीछे नहीं है छोड़ता।
देख लेवें लोग दौड़ा कर उसे।
दौड़ने पर जी बहुत है दौड़ता।
धीर होते कभी अधीर नहीं।
क्यों न सिर बिपत बितान तने।
हाथ का आँवला न है अवसर।
बावला मन उतावला न बने।
काम से मोड़ें न मुँह, तोड़ें न दम।
चाम तन का क्यों न छन छन परछिले।
हिल गये दिल भी न, हिलना चाहिए।
जाँय हिल क्यों पेट का पानी हिले।
जो गिरें टूट टूट तन रोयें।
जग उठें और जाति जय बोलें।
बन अमर देस-हित रहें करते।
मर मिटें पर कमर न हम खोलें।
फूट घर में न फ़ैलने पावे।
फूट कर भी न आँख फूट सके।
टूट में जाय पड़ नहीं कोई।
टूट कर भी कमर न टूट सके।
सब दिनों दुख पीसता जिन को रहा।
मुँह पराया ताककर ही वे पिसे।
वह कमाई कर कभी हारा नहीं।
जाँघ का अपनी सहारा है जिसे।
वह जिसे सामने सदा लाई।
है नहीं अंत उस समाई का।
नाम कर काम का बना देना।
काम है जाँघ की कमाई का।
जी लगा काम औ कमाई कर।
हो गये कामयाब माहिर सब।
हैं जवाहिर न जौहरी के घर।
जाँघ में हैं भरे जवाहिर सब।
छल कपट के हाथ से छूटे रहें।
पाँव मेरे तो कहीं कैसे छिकें।
कर न दें तलबेलियाँ बेकार तो।
धार पर तलवार की तलवे टिकें।