"अपने दुखड़े / हरिऔध" के अवतरणों में अंतर
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ |अ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) |
||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | जब कि जीना न रह गया जीना। | |
− | + | ||
तब भला है कि मौत ही आती। | तब भला है कि मौत ही आती। | ||
− | |||
जब कि उठना बहुत सताता है। | जब कि उठना बहुत सताता है। | ||
− | |||
आँख तो बैठ क्यों नहीं जाती। | आँख तो बैठ क्यों नहीं जाती। | ||
वार करना भी जिन्हें आता नहीं। | वार करना भी जिन्हें आता नहीं। | ||
− | |||
चल सकी तलवार उन की कब कहीं। | चल सकी तलवार उन की कब कहीं। | ||
− | + | सिर उठा कैसे सकेंगे वे भला। | |
− | सिर उठा | + | |
− | + | ||
आँख अपनी जो उठा सकते नहीं। | आँख अपनी जो उठा सकते नहीं। | ||
जब कि दबते गये दबाने से। | जब कि दबते गये दबाने से। | ||
− | + | लोग कैसे न तब दबावेंगे। | |
− | लोग | + | |
− | + | ||
जब कि हम आँख देख लेवेंगे। | जब कि हम आँख देख लेवेंगे। | ||
− | |||
लोग आँखें न क्यों दिखावेंगे। | लोग आँखें न क्यों दिखावेंगे। | ||
दौड़ में सब जातियाँ आगे बढ़ीं। | दौड़ में सब जातियाँ आगे बढ़ीं। | ||
− | |||
पेट में सबके पड़ी है खलबली। | पेट में सबके पड़ी है खलबली। | ||
− | |||
आज भी हम करवटें हैं ले रहे। | आज भी हम करवटें हैं ले रहे। | ||
− | + | खुल सकीं खोले न आँखें अधखुली। | |
− | खुल सकीं खोले न आँखें | + | |
काटने से कट न दुख के दिन सके। | काटने से कट न दुख के दिन सके। | ||
− | |||
यों पड़े कब तक रहें काँटों में हम। | यों पड़े कब तक रहें काँटों में हम। | ||
− | |||
आज भी जी का नहीं काँटा कढ़ा। | आज भी जी का नहीं काँटा कढ़ा। | ||
− | |||
है खटकता आँख का काँटा न कम। | है खटकता आँख का काँटा न कम। | ||
रह गई अब न ताब रोने की। | रह गई अब न ताब रोने की। | ||
− | |||
दर दुखों का कहाँ तलक मूँदें। | दर दुखों का कहाँ तलक मूँदें। | ||
− | |||
कम निचोड़ी गईं नहीं आँखें। | कम निचोड़ी गईं नहीं आँखें। | ||
− | |||
आँसुओं की कहाँ मिलें बूँदें। | आँसुओं की कहाँ मिलें बूँदें। | ||
जाति का दिन फिरा जिन्हें पाकर। | जाति का दिन फिरा जिन्हें पाकर। | ||
− | |||
जो न फरफंद के रहे नेही। | जो न फरफंद के रहे नेही। | ||
− | |||
है बिपद फेरफार में फँस कर। | है बिपद फेरफार में फँस कर। | ||
− | + | मुँह फ़ुलाये फिरें अगर वे ही। | |
− | मुँह | + | |
सुन सके तो किस तरह से सुन सके। | सुन सके तो किस तरह से सुन सके। | ||
− | |||
कान में जब तेल ही डाला रहा। | कान में जब तेल ही डाला रहा। | ||
− | |||
खुल सके तो किस तरह से खुल सके। | खुल सके तो किस तरह से खुल सके। | ||
− | |||
जब किसी मुँह में लगा ताला रहा। | जब किसी मुँह में लगा ताला रहा। | ||
हो बुरा उन कचाइयों का जो। | हो बुरा उन कचाइयों का जो। | ||
− | |||
पत उतारे बिना नहीं मुड़तीं। | पत उतारे बिना नहीं मुड़तीं। | ||
− | |||
जब हवा आप हो गये हम तो। | जब हवा आप हो गये हम तो। | ||
− | |||
क्यों न मुँह पर हवाइयाँ उड़तीं। | क्यों न मुँह पर हवाइयाँ उड़तीं। | ||
− | पेट | + | पेट कैसे न तब भला ऐंठे। |
− | + | ||
जब कि हैं मल भरी हुई आँतें। | जब कि हैं मल भरी हुई आँतें। | ||
− | |||
तो न क्यों जाति पेच में पड़ती। | तो न क्यों जाति पेच में पड़ती। | ||
− | |||
जो रुचीं पेचपाच की बातें। | जो रुचीं पेचपाच की बातें। | ||
दिन अगर लाग डाँट में बीतें। | दिन अगर लाग डाँट में बीतें। | ||
− | |||
तो कटें खींच तान में रातें। | तो कटें खींच तान में रातें। | ||
− | |||
आज हैं दिल मिले अलग होते। | आज हैं दिल मिले अलग होते। | ||
− | |||
हैं कहाँ मेल जोल की बातें। | हैं कहाँ मेल जोल की बातें। | ||
जब कि नामरदी पड़ी है बाँट में। | जब कि नामरदी पड़ी है बाँट में। | ||
− | |||
क्यों न तब मरदानपन की जड़ खने। | क्यों न तब मरदानपन की जड़ खने। | ||
− | + | तब भला मरदानगी कैसे रहे। | |
− | तब भला मरदानगी | + | |
− | + | ||
मूँछ बनवा जब मरद अमरद बने। | मूँछ बनवा जब मरद अमरद बने। | ||
है भला और क्या हमें आता। | है भला और क्या हमें आता। | ||
− | |||
दूसरी बात और क्या होती। | दूसरी बात और क्या होती। | ||
− | |||
हँस दिये देख सूरतें हँसती। | हँस दिये देख सूरतें हँसती। | ||
− | |||
रो दिये देख सूरतें रोती। | रो दिये देख सूरतें रोती। | ||
किस लिए इस तरह गया पकड़ा। | किस लिए इस तरह गया पकड़ा। | ||
− | |||
इस तरह क्यों अभाग आ टूटा। | इस तरह क्यों अभाग आ टूटा। | ||
− | |||
जायगा छूट या न छूटेगा। | जायगा छूट या न छूटेगा। | ||
− | |||
आज तक तो गला नहीं छूटा। | आज तक तो गला नहीं छूटा। | ||
जी गया ऊब कर जतन कितने। | जी गया ऊब कर जतन कितने। | ||
− | |||
जा रहा है बुरी तरह जकड़ा। | जा रहा है बुरी तरह जकड़ा। | ||
− | + | है कुदिन ने बुरी पकड़ पकड़ी। | |
− | है | + | |
− | + | ||
है गया बेतरह गला पकड़ा। | है गया बेतरह गला पकड़ा। | ||
जो बुरा हो चाहते, कर लो बुरा। | जो बुरा हो चाहते, कर लो बुरा। | ||
− | |||
क्या भलाई कर नहीं देगा भला। | क्या भलाई कर नहीं देगा भला। | ||
− | + | बंधनों को खोलते हैं दूसरे। | |
− | + | बाँध दो जो बाँध देते हो गला। | |
− | + | ||
− | + | ||
कौन किस की भला पुकार सुने। | कौन किस की भला पुकार सुने। | ||
− | |||
कौन किस के लिए भला आये। | कौन किस के लिए भला आये। | ||
− | |||
देखते आँख फाड़ फाड़ रहे। | देखते आँख फाड़ फाड़ रहे। | ||
− | |||
हम गला फाड़ फाड़ चिल्लाये। | हम गला फाड़ फाड़ चिल्लाये। | ||
घिर गये बेतरह बिपत-बादल। | घिर गये बेतरह बिपत-बादल। | ||
− | |||
मच गई लूट, पत गई लूटी। | मच गई लूट, पत गई लूटी। | ||
− | + | कूटते क्यों न तब फिरें छाती। | |
− | + | ||
− | + | ||
फूटते आँख बाँह भी टूटी। | फूटते आँख बाँह भी टूटी। | ||
हाल अब तो लिखा नहीं जाता। | हाल अब तो लिखा नहीं जाता। | ||
− | |||
आज दिन बात है सभी बदली। | आज दिन बात है सभी बदली। | ||
− | |||
पक गया जी, बहक गया है मन। | पक गया जी, बहक गया है मन। | ||
− | |||
थक गया हाथ, घिस गई उँगली। | थक गया हाथ, घिस गई उँगली। | ||
है जहाँ पर पेट भी पला नहीं। | है जहाँ पर पेट भी पला नहीं। | ||
− | |||
किस तरह सुख से वहाँ कोई जिये। | किस तरह सुख से वहाँ कोई जिये। | ||
− | |||
क्यों वहाँ पर चैन मिल पाये जहाँ। | क्यों वहाँ पर चैन मिल पाये जहाँ। | ||
− | |||
है चपत चलता चपाती के लिए। | है चपत चलता चपाती के लिए। | ||
तब थमेगी किस तरह संजीदगी। | तब थमेगी किस तरह संजीदगी। | ||
− | |||
थामने से मन न जब थमता रहा। | थामने से मन न जब थमता रहा। | ||
− | |||
तब हमारी किस तरह चाँदी रहे। | तब हमारी किस तरह चाँदी रहे। | ||
− | |||
जब कि चाँदी पर चपत जमता रहा। | जब कि चाँदी पर चपत जमता रहा। | ||
है मुसीबत बेतरह पीछे पड़ी। | है मुसीबत बेतरह पीछे पड़ी। | ||
− | |||
हैं नहीं सामान बचते साथ के। | हैं नहीं सामान बचते साथ के। | ||
− | |||
हाथ मल मल कर न क्योंपछताँयहम। | हाथ मल मल कर न क्योंपछताँयहम। | ||
− | |||
उड़ गये तोते हमारे हाथ के। | उड़ गये तोते हमारे हाथ के। | ||
टूटने की ब्योंत बहुतेरी हुई। | टूटने की ब्योंत बहुतेरी हुई। | ||
− | + | पर बुरा बंधन तनिक टूटा नहीं। | |
− | पर बुरा | + | |
− | + | ||
छूटते तो किस तरह हम छूटते। | छूटते तो किस तरह हम छूटते। | ||
− | |||
जब हमारा हाथ ही छूटा नहीं। | जब हमारा हाथ ही छूटा नहीं। | ||
बेतरह है गला बँधा अब भी। | बेतरह है गला बँधा अब भी। | ||
− | |||
है न रस्सी कमरबँधी छूटी। | है न रस्सी कमरबँधी छूटी। | ||
− | |||
पाँव की बेड़ियाँ न खुल पाईं। | पाँव की बेड़ियाँ न खुल पाईं। | ||
− | |||
हथकड़ी हाथ की नहीं टूटी। | हथकड़ी हाथ की नहीं टूटी। | ||
टूट पाये न जाल दुखड़ों के। | टूट पाये न जाल दुखड़ों के। | ||
− | |||
उलझनों के नुचे न झोले हैं। | उलझनों के नुचे न झोले हैं। | ||
− | |||
खोलते खोलते पड़े फंदे। | खोलते खोलते पड़े फंदे। | ||
− | |||
पड़ गये हाथ में फफोले हैं। | पड़ गये हाथ में फफोले हैं। | ||
मन हमारा रहा नहीं बस में। | मन हमारा रहा नहीं बस में। | ||
− | |||
और कस में रही नहीं काया। | और कस में रही नहीं काया। | ||
− | |||
है इसी से बसर नहीं होती। | है इसी से बसर नहीं होती। | ||
− | |||
रह सका हाथ का न सरमाया। | रह सका हाथ का न सरमाया। | ||
− | देख करके नौजवानों की | + | देख करके नौजवानों की बहक। |
− | + | ||
सिरधारों की बात सुन कर अटपटी। | सिरधारों की बात सुन कर अटपटी। | ||
− | |||
देखकर टूटा हुआ दिल जाति का। | देखकर टूटा हुआ दिल जाति का। | ||
− | |||
भाग ही फूटा न, छाती भी फटी। | भाग ही फूटा न, छाती भी फटी। | ||
क्यों भला बेताबियाँ बढ़तीं नहीं। | क्यों भला बेताबियाँ बढ़तीं नहीं। | ||
− | |||
बेतरह लूटे गये, बेढब पिटे। | बेतरह लूटे गये, बेढब पिटे। | ||
− | |||
तब भला जी जाय क्यों छितरा नहीं। | तब भला जी जाय क्यों छितरा नहीं। | ||
− | |||
जब कि छाती में रहें काँटे छिंटे। | जब कि छाती में रहें काँटे छिंटे। | ||
हो गये शल हाथ सब तदबीर के। | हो गये शल हाथ सब तदबीर के। | ||
− | |||
घट गया बल, पड़ गई पीछे बला। | घट गया बल, पड़ गई पीछे बला। | ||
− | |||
हम उबर पाये न सिर के बार से। | हम उबर पाये न सिर के बार से। | ||
− | |||
बोझ छाती का नहीं टाले टला। | बोझ छाती का नहीं टाले टला। | ||
उस बहुत ही बुरे बसेरे में। | उस बहुत ही बुरे बसेरे में। | ||
− | |||
है जहाँ बैर फूट का डेरा। | है जहाँ बैर फूट का डेरा। | ||
− | + | जाति को देख बेधड़क जाते। | |
− | जाति को देख | + | है कलेजा धड़क रहा मेरा। |
− | + | ||
− | है कलेजा | + | |
चाहिए था कि जाति का बेड़ा। | चाहिए था कि जाति का बेड़ा। | ||
− | |||
रह सजग ढंग से सँभल खेते। | रह सजग ढंग से सँभल खेते। | ||
− | |||
देख गिरदाब में गिरा उस को। | देख गिरदाब में गिरा उस को। | ||
− | |||
हैं कलेजा पकड़ पकड़ लेते। | हैं कलेजा पकड़ पकड़ लेते। | ||
सामने से बहाव जो आया। | सामने से बहाव जो आया। | ||
− | |||
वह उसी में गई, न पाई थम। | वह उसी में गई, न पाई थम। | ||
− | |||
देख यह जाति की बड़ी सुबुकी। | देख यह जाति की बड़ी सुबुकी। | ||
− | |||
रह गये थाम कर कलेजा हम। | रह गये थाम कर कलेजा हम। | ||
तब गई कब नहीं उधार ही फिर। | तब गई कब नहीं उधार ही फिर। | ||
− | + | जब किसी ने उसे जिधर फेरा। | |
− | जब किसी ने उसे | + | |
− | + | ||
जाति का देख बेकलेजापन। | जाति का देख बेकलेजापन। | ||
− | |||
है कलेजा निकल पड़ा मेरा। | है कलेजा निकल पड़ा मेरा। | ||
जाति के पाँचवें सवारों में। | जाति के पाँचवें सवारों में। | ||
− | |||
और उन में जिन्हें कहें बरतर। | और उन में जिन्हें कहें बरतर। | ||
− | |||
देख कर चोट बेतरह चलती। | देख कर चोट बेतरह चलती। | ||
− | |||
चोट है लग रही कलेजे पर। | चोट है लग रही कलेजे पर। | ||
हम दुखी हैं कहें कहाँ तक दुख। | हम दुखी हैं कहें कहाँ तक दुख। | ||
− | |||
कब न सूई चुभी नयन तिल में। | कब न सूई चुभी नयन तिल में। | ||
− | |||
कब रहे दुख न फूलते फलते। | कब रहे दुख न फूलते फलते। | ||
− | |||
कब कफोले पड़े नहीं दिल में। | कब कफोले पड़े नहीं दिल में। | ||
आज दिन भी बेतरह हैं पिस रहे। | आज दिन भी बेतरह हैं पिस रहे। | ||
− | |||
छूटते उन के बतोले हैं नहीं। | छूटते उन के बतोले हैं नहीं। | ||
− | |||
हैं फफोले पर फफोले पड़ रहे। | हैं फफोले पर फफोले पड़ रहे। | ||
− | |||
टूटते दिल के फफोले हैं नहीं। | टूटते दिल के फफोले हैं नहीं। | ||
देख करके चहल पहल अब तो। | देख करके चहल पहल अब तो। | ||
− | + | दिल अनायास है दहल जाता। | |
− | दिल | + | |
− | + | ||
क्यों न सब दुख-सवाल हल होते। | क्यों न सब दुख-सवाल हल होते। | ||
− | |||
दिल हमारा अगर बहल जाता। | दिल हमारा अगर बहल जाता। | ||
वह रहा फूल हो गया काँटा। | वह रहा फूल हो गया काँटा। | ||
− | |||
स्वर्ग से भूत का बना डेरा। | स्वर्ग से भूत का बना डेरा। | ||
− | |||
लाट था अब गया बहुत ही लट। | लाट था अब गया बहुत ही लट। | ||
− | |||
बल पड़े दिल उलट गया मेरा। | बल पड़े दिल उलट गया मेरा। | ||
है बुरी चाट लग गई जी को। | है बुरी चाट लग गई जी को। | ||
− | |||
बेतरह है कचट कचट जाता। | बेतरह है कचट कचट जाता। | ||
− | + | हो गया है उचाट कुछ ऐसा। | |
− | हो गया है उचाट | + | |
− | + | ||
आज दिल है उचट उचट जाता। | आज दिल है उचट उचट जाता। | ||
क्या अभी अब नहीं खिलेगा वह। | क्या अभी अब नहीं खिलेगा वह। | ||
− | |||
फूल सुख का न खिल सका मेरा। | फूल सुख का न खिल सका मेरा। | ||
− | |||
खा बुरी चोट दुख-चपेटों की। | खा बुरी चोट दुख-चपेटों की। | ||
− | |||
हो गया चूर चूर दिल मेरा। | हो गया चूर चूर दिल मेरा। | ||
है कलेजा निकल रहा मेरा। | है कलेजा निकल रहा मेरा। | ||
− | |||
हैं लहू घूँट इन दिनों पीते। | हैं लहू घूँट इन दिनों पीते। | ||
− | |||
काटते हैं बड़े दुखों से दिन। | काटते हैं बड़े दुखों से दिन। | ||
− | |||
पेट हम काट काट हैं जीते। | पेट हम काट काट हैं जीते। | ||
भीख माँगे हमें नहीं मिलती। | भीख माँगे हमें नहीं मिलती। | ||
− | |||
रह गये हाथ में नहीं पैसे। | रह गये हाथ में नहीं पैसे। | ||
− | |||
आग है लग गईं कमाई में। | आग है लग गईं कमाई में। | ||
− | + | पेट की आग बुझ सके कैसे। | |
− | पेट की आग बुझ सके | + | |
पेट पापी नहीं कराता क्या। | पेट पापी नहीं कराता क्या। | ||
− | |||
सोच लें बल निकालनेवाले। | सोच लें बल निकालनेवाले। | ||
− | |||
पालना पेट तो पड़े ही गा। | पालना पेट तो पड़े ही गा। | ||
− | |||
क्या करें पेट पालनेवाले। | क्या करें पेट पालनेवाले। | ||
आँख उठती नहीं उठाये भी। | आँख उठती नहीं उठाये भी। | ||
− | |||
मुँह बहुत ही सहम सिये हम हैं। | मुँह बहुत ही सहम सिये हम हैं। | ||
− | |||
रात दिन पेट थाम कर अपना। | रात दिन पेट थाम कर अपना। | ||
− | |||
दौड़ते पेट के लिए हम हैं। | दौड़ते पेट के लिए हम हैं। | ||
कब दुखी-दुख सुखी समझता है। | कब दुखी-दुख सुखी समझता है। | ||
− | |||
मतलबी लोग हैं न यम से कम। | मतलबी लोग हैं न यम से कम। | ||
− | |||
रह गये हैं न देखनेवाले। | रह गये हैं न देखनेवाले। | ||
− | |||
पेट अपना किसे दिखायें हम। | पेट अपना किसे दिखायें हम। | ||
देखता कोई दुखी का दुख नहीं। | देखता कोई दुखी का दुख नहीं। | ||
− | |||
मूँद आँखों को दिया आराम ने। | मूँद आँखों को दिया आराम ने। | ||
− | |||
आज दिन है माँगना खलता बहुत। | आज दिन है माँगना खलता बहुत। | ||
− | |||
हम खलायें पेट किस के सामने। | हम खलायें पेट किस के सामने। | ||
तरबतर हो आँसुओं से बेतरह। | तरबतर हो आँसुओं से बेतरह। | ||
− | |||
कब हमारी बेकसी रोई नहीं। | कब हमारी बेकसी रोई नहीं। | ||
− | + | पीठ कैसे लग नहीं जाती भला। | |
− | पीठ | + | |
− | + | ||
है हमारी पीठ पर कोई नहीं। | है हमारी पीठ पर कोई नहीं। | ||
जातिहित के बड़े कठिन पथ में। | जातिहित के बड़े कठिन पथ में। | ||
− | |||
कब ठहर वह सका ठिकाने से। | कब ठहर वह सका ठिकाने से। | ||
− | |||
टल गया टालटूल कर कितने। | टल गया टालटूल कर कितने। | ||
− | |||
टिक सका पाँव कब टिकाने से। | टिक सका पाँव कब टिकाने से। | ||
सब सुखों के हमें पड़े लाले। | सब सुखों के हमें पड़े लाले। | ||
− | + | है कुदिन ने न कौन डाले बल। | |
− | है | + | |
− | + | ||
है न कल मिल रही कसाले सह। | है न कल मिल रही कसाले सह। | ||
− | |||
घिस गये पाँच कोस काले चल। | घिस गये पाँच कोस काले चल। | ||
हित न हो पाया गया चित हो दुचित। | हित न हो पाया गया चित हो दुचित। | ||
− | |||
आँख से आँसू छगूना नित छना। | आँख से आँसू छगूना नित छना। | ||
− | |||
कोस काले चल कलेजा हिल गया। | कोस काले चल कलेजा हिल गया। | ||
− | |||
पाँव काँटों से छिले छलनी बना। | पाँव काँटों से छिले छलनी बना। | ||
काहिली भागी भगाने से नहीं। | काहिली भागी भगाने से नहीं। | ||
− | |||
है नहीं जीवट जगाने से जगी। | है नहीं जीवट जगाने से जगी। | ||
− | |||
तूल हो दुख तिल गया है ताल बन। | तूल हो दुख तिल गया है ताल बन। | ||
− | |||
है हमें तब भी न तलवों से लगी। | है हमें तब भी न तलवों से लगी। | ||
</poem> | </poem> |
15:28, 20 मार्च 2014 के समय का अवतरण
जब कि जीना न रह गया जीना।
तब भला है कि मौत ही आती।
जब कि उठना बहुत सताता है।
आँख तो बैठ क्यों नहीं जाती।
वार करना भी जिन्हें आता नहीं।
चल सकी तलवार उन की कब कहीं।
सिर उठा कैसे सकेंगे वे भला।
आँख अपनी जो उठा सकते नहीं।
जब कि दबते गये दबाने से।
लोग कैसे न तब दबावेंगे।
जब कि हम आँख देख लेवेंगे।
लोग आँखें न क्यों दिखावेंगे।
दौड़ में सब जातियाँ आगे बढ़ीं।
पेट में सबके पड़ी है खलबली।
आज भी हम करवटें हैं ले रहे।
खुल सकीं खोले न आँखें अधखुली।
काटने से कट न दुख के दिन सके।
यों पड़े कब तक रहें काँटों में हम।
आज भी जी का नहीं काँटा कढ़ा।
है खटकता आँख का काँटा न कम।
रह गई अब न ताब रोने की।
दर दुखों का कहाँ तलक मूँदें।
कम निचोड़ी गईं नहीं आँखें।
आँसुओं की कहाँ मिलें बूँदें।
जाति का दिन फिरा जिन्हें पाकर।
जो न फरफंद के रहे नेही।
है बिपद फेरफार में फँस कर।
मुँह फ़ुलाये फिरें अगर वे ही।
सुन सके तो किस तरह से सुन सके।
कान में जब तेल ही डाला रहा।
खुल सके तो किस तरह से खुल सके।
जब किसी मुँह में लगा ताला रहा।
हो बुरा उन कचाइयों का जो।
पत उतारे बिना नहीं मुड़तीं।
जब हवा आप हो गये हम तो।
क्यों न मुँह पर हवाइयाँ उड़तीं।
पेट कैसे न तब भला ऐंठे।
जब कि हैं मल भरी हुई आँतें।
तो न क्यों जाति पेच में पड़ती।
जो रुचीं पेचपाच की बातें।
दिन अगर लाग डाँट में बीतें।
तो कटें खींच तान में रातें।
आज हैं दिल मिले अलग होते।
हैं कहाँ मेल जोल की बातें।
जब कि नामरदी पड़ी है बाँट में।
क्यों न तब मरदानपन की जड़ खने।
तब भला मरदानगी कैसे रहे।
मूँछ बनवा जब मरद अमरद बने।
है भला और क्या हमें आता।
दूसरी बात और क्या होती।
हँस दिये देख सूरतें हँसती।
रो दिये देख सूरतें रोती।
किस लिए इस तरह गया पकड़ा।
इस तरह क्यों अभाग आ टूटा।
जायगा छूट या न छूटेगा।
आज तक तो गला नहीं छूटा।
जी गया ऊब कर जतन कितने।
जा रहा है बुरी तरह जकड़ा।
है कुदिन ने बुरी पकड़ पकड़ी।
है गया बेतरह गला पकड़ा।
जो बुरा हो चाहते, कर लो बुरा।
क्या भलाई कर नहीं देगा भला।
बंधनों को खोलते हैं दूसरे।
बाँध दो जो बाँध देते हो गला।
कौन किस की भला पुकार सुने।
कौन किस के लिए भला आये।
देखते आँख फाड़ फाड़ रहे।
हम गला फाड़ फाड़ चिल्लाये।
घिर गये बेतरह बिपत-बादल।
मच गई लूट, पत गई लूटी।
कूटते क्यों न तब फिरें छाती।
फूटते आँख बाँह भी टूटी।
हाल अब तो लिखा नहीं जाता।
आज दिन बात है सभी बदली।
पक गया जी, बहक गया है मन।
थक गया हाथ, घिस गई उँगली।
है जहाँ पर पेट भी पला नहीं।
किस तरह सुख से वहाँ कोई जिये।
क्यों वहाँ पर चैन मिल पाये जहाँ।
है चपत चलता चपाती के लिए।
तब थमेगी किस तरह संजीदगी।
थामने से मन न जब थमता रहा।
तब हमारी किस तरह चाँदी रहे।
जब कि चाँदी पर चपत जमता रहा।
है मुसीबत बेतरह पीछे पड़ी।
हैं नहीं सामान बचते साथ के।
हाथ मल मल कर न क्योंपछताँयहम।
उड़ गये तोते हमारे हाथ के।
टूटने की ब्योंत बहुतेरी हुई।
पर बुरा बंधन तनिक टूटा नहीं।
छूटते तो किस तरह हम छूटते।
जब हमारा हाथ ही छूटा नहीं।
बेतरह है गला बँधा अब भी।
है न रस्सी कमरबँधी छूटी।
पाँव की बेड़ियाँ न खुल पाईं।
हथकड़ी हाथ की नहीं टूटी।
टूट पाये न जाल दुखड़ों के।
उलझनों के नुचे न झोले हैं।
खोलते खोलते पड़े फंदे।
पड़ गये हाथ में फफोले हैं।
मन हमारा रहा नहीं बस में।
और कस में रही नहीं काया।
है इसी से बसर नहीं होती।
रह सका हाथ का न सरमाया।
देख करके नौजवानों की बहक।
सिरधारों की बात सुन कर अटपटी।
देखकर टूटा हुआ दिल जाति का।
भाग ही फूटा न, छाती भी फटी।
क्यों भला बेताबियाँ बढ़तीं नहीं।
बेतरह लूटे गये, बेढब पिटे।
तब भला जी जाय क्यों छितरा नहीं।
जब कि छाती में रहें काँटे छिंटे।
हो गये शल हाथ सब तदबीर के।
घट गया बल, पड़ गई पीछे बला।
हम उबर पाये न सिर के बार से।
बोझ छाती का नहीं टाले टला।
उस बहुत ही बुरे बसेरे में।
है जहाँ बैर फूट का डेरा।
जाति को देख बेधड़क जाते।
है कलेजा धड़क रहा मेरा।
चाहिए था कि जाति का बेड़ा।
रह सजग ढंग से सँभल खेते।
देख गिरदाब में गिरा उस को।
हैं कलेजा पकड़ पकड़ लेते।
सामने से बहाव जो आया।
वह उसी में गई, न पाई थम।
देख यह जाति की बड़ी सुबुकी।
रह गये थाम कर कलेजा हम।
तब गई कब नहीं उधार ही फिर।
जब किसी ने उसे जिधर फेरा।
जाति का देख बेकलेजापन।
है कलेजा निकल पड़ा मेरा।
जाति के पाँचवें सवारों में।
और उन में जिन्हें कहें बरतर।
देख कर चोट बेतरह चलती।
चोट है लग रही कलेजे पर।
हम दुखी हैं कहें कहाँ तक दुख।
कब न सूई चुभी नयन तिल में।
कब रहे दुख न फूलते फलते।
कब कफोले पड़े नहीं दिल में।
आज दिन भी बेतरह हैं पिस रहे।
छूटते उन के बतोले हैं नहीं।
हैं फफोले पर फफोले पड़ रहे।
टूटते दिल के फफोले हैं नहीं।
देख करके चहल पहल अब तो।
दिल अनायास है दहल जाता।
क्यों न सब दुख-सवाल हल होते।
दिल हमारा अगर बहल जाता।
वह रहा फूल हो गया काँटा।
स्वर्ग से भूत का बना डेरा।
लाट था अब गया बहुत ही लट।
बल पड़े दिल उलट गया मेरा।
है बुरी चाट लग गई जी को।
बेतरह है कचट कचट जाता।
हो गया है उचाट कुछ ऐसा।
आज दिल है उचट उचट जाता।
क्या अभी अब नहीं खिलेगा वह।
फूल सुख का न खिल सका मेरा।
खा बुरी चोट दुख-चपेटों की।
हो गया चूर चूर दिल मेरा।
है कलेजा निकल रहा मेरा।
हैं लहू घूँट इन दिनों पीते।
काटते हैं बड़े दुखों से दिन।
पेट हम काट काट हैं जीते।
भीख माँगे हमें नहीं मिलती।
रह गये हाथ में नहीं पैसे।
आग है लग गईं कमाई में।
पेट की आग बुझ सके कैसे।
पेट पापी नहीं कराता क्या।
सोच लें बल निकालनेवाले।
पालना पेट तो पड़े ही गा।
क्या करें पेट पालनेवाले।
आँख उठती नहीं उठाये भी।
मुँह बहुत ही सहम सिये हम हैं।
रात दिन पेट थाम कर अपना।
दौड़ते पेट के लिए हम हैं।
कब दुखी-दुख सुखी समझता है।
मतलबी लोग हैं न यम से कम।
रह गये हैं न देखनेवाले।
पेट अपना किसे दिखायें हम।
देखता कोई दुखी का दुख नहीं।
मूँद आँखों को दिया आराम ने।
आज दिन है माँगना खलता बहुत।
हम खलायें पेट किस के सामने।
तरबतर हो आँसुओं से बेतरह।
कब हमारी बेकसी रोई नहीं।
पीठ कैसे लग नहीं जाती भला।
है हमारी पीठ पर कोई नहीं।
जातिहित के बड़े कठिन पथ में।
कब ठहर वह सका ठिकाने से।
टल गया टालटूल कर कितने।
टिक सका पाँव कब टिकाने से।
सब सुखों के हमें पड़े लाले।
है कुदिन ने न कौन डाले बल।
है न कल मिल रही कसाले सह।
घिस गये पाँच कोस काले चल।
हित न हो पाया गया चित हो दुचित।
आँख से आँसू छगूना नित छना।
कोस काले चल कलेजा हिल गया।
पाँव काँटों से छिले छलनी बना।
काहिली भागी भगाने से नहीं।
है नहीं जीवट जगाने से जगी।
तूल हो दुख तिल गया है ताल बन।
है हमें तब भी न तलवों से लगी।