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बात चिकनी कपट भरी कह कर।
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बात चिकनी कपट भरी कह कर।
 
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जब कि वह जाति पर बला लावे।
 
जब कि वह जाति पर बला लावे।
 
 
जब रही खींचतान में पड़ती।
 
जब रही खींचतान में पड़ती।
 
 
जीभ तब खैंच क्यों न जी जावे।
 
जीभ तब खैंच क्यों न जी जावे।
  
 
पेट की चापलूसियों में पड़।
 
पेट की चापलूसियों में पड़।
 
 
गालियाँ जो कि जाति को देवें।
 
गालियाँ जो कि जाति को देवें।
 
 
चाहिए तो बिना रुके हिचके।
 
चाहिए तो बिना रुके हिचके।
 
 
जीभ उन की निकाल ही लेवें।
 
जीभ उन की निकाल ही लेवें।
  
 
जो कि बेढंग चल करे चौपट।
 
जो कि बेढंग चल करे चौपट।
 
 
चाहिए ऐंच कर उसे दम लें।
 
चाहिए ऐंच कर उसे दम लें।
 
 
जाति की नाक कट गई जिस से।
 
जाति की नाक कट गई जिस से।
 
 
काट उस जीभ को न क्यों हम लें।
 
काट उस जीभ को न क्यों हम लें।
  
 
वार पर वार कर रही जब थी।
 
वार पर वार कर रही जब थी।
 
 
तब भला किस तरह, तरह देते।
 
तब भला किस तरह, तरह देते।
 
 
पड़ गई जाति गाढ़ में जिस से।
 
पड़ गई जाति गाढ़ में जिस से।
 
 
काढ़ उस जीभ को न क्यों लेते।
 
काढ़ उस जीभ को न क्यों लेते।
  
 
जाति के काम जब नहीं आते।
 
जाति के काम जब नहीं आते।
 
 
डींग हम मारते रहे तब क्या।
 
डींग हम मारते रहे तब क्या।
 
 
जब कि फटकार ही रही पड़ती।
 
जब कि फटकार ही रही पड़ती।
 
 
मूँछ फटकारते रहे तब क्या।
 
मूँछ फटकारते रहे तब क्या।
  
 
जाति के देख देख कर दुखड़े।
 
जाति के देख देख कर दुखड़े।
 
 
जो न बेताब बन उन्हें पूछें।
 
जो न बेताब बन उन्हें पूछें।
 
 
रोंगटे जो खड़े न हो जावें।
 
रोंगटे जो खड़े न हो जावें।
 
 
तो रहीं क्या खड़ी खड़ी मूँछें।
 
तो रहीं क्या खड़ी खड़ी मूँछें।
  
जाग तब वै+से सवें+गे, ज्ञान की।
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जाग तब कैसे सकेंगे, ज्ञान की।
 
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जोत जी में जब कि जगती ही नहीं।
 
जोत जी में जब कि जगती ही नहीं।
 
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तब भला कैसे हमें जी से लगे।
तब भला वै+से हमें जी से लगे।
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बात लगती जब कि लगती ही नहीं।
 
बात लगती जब कि लगती ही नहीं।
  
है बहँक इतनी कि कितनी बात को।
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है बहक इतनी कि कितनी बात को।
 
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ताड़ कर के भी नहीं हम ताड़ते।
 
ताड़ कर के भी नहीं हम ताड़ते।
 
 
है हमारी बात की यह बानगी।
 
है हमारी बात की यह बानगी।
 
 
हैं बना कर बात बात बिगाड़ते।
 
हैं बना कर बात बात बिगाड़ते।
  
 
क्यों न बल को तौल लें, होगा बुरा।
 
क्यों न बल को तौल लें, होगा बुरा।
 
 
बात जी में बेठिकाने की ठने।
 
बात जी में बेठिकाने की ठने।
 
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क्या किसी की हम गढ़ेंगे हव्वियाँ।
क्या किसी की हम गढ़ेंगे हव्यिाँ।
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बात गढ़ लेवें अगर गढ़ते बने।
 
बात गढ़ लेवें अगर गढ़ते बने।
  
 
जीभ सड़ जाती न जाने क्यों नहीं।
 
जीभ सड़ जाती न जाने क्यों नहीं।
 
 
बेअटक कहते हुए बातें सड़ी।
 
बेअटक कहते हुए बातें सड़ी।
 
 
बात सीधी किस तरह से तब कहें।
 
बात सीधी किस तरह से तब कहें।
 
 
बाँट में जब बात टेढ़ी ही पड़ी।
 
बाँट में जब बात टेढ़ी ही पड़ी।
  
 
दूर की लेंगे बकेंगे बहक कर।
 
दूर की लेंगे बकेंगे बहक कर।
 
 
काम के हित जी हुआ बै ही नहीं।
 
काम के हित जी हुआ बै ही नहीं।
 
 
किस तरह लेंगे खिलौना चाँद का।
 
किस तरह लेंगे खिलौना चाँद का।
 
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बात है, करतूत कुछ है ही नहीं।
बात है, करतूत वु+छ है ही नहीं।
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जाति को देख कर पड़ा दुख में।
 
जाति को देख कर पड़ा दुख में।
 
 
अब चलेंगे न हम मदद देने।
 
अब चलेंगे न हम मदद देने।
 
 
पड़ गये काम काइयाँपन कर।
 
पड़ गये काम काइयाँपन कर।
 
 
लग गये हैं जँभाइयाँ लेने।
 
लग गये हैं जँभाइयाँ लेने।
  
है उन्हें छुट्टी कहाँ जो वु+छ करें।
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है उन्हें छुट्टी कहाँ जो कुछ करें।
 
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क्या हुआ जो आबरू है जा रही।
 
क्या हुआ जो आबरू है जा रही।
 
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लें अगर अँगड़ाइयाँ हैं ले रहे।
लें अगर ऍंगड़ाइयाँ हैं ले रहे।
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लें जँभा जो है जँभाई आ रही।
 
लें जँभा जो है जँभाई आ रही।
  
 
जाति औ प्रीति की अजब जोड़ी।
 
जाति औ प्रीति की अजब जोड़ी।
 
 
है बँधी धाक जो बिछुड़ खोती।
 
है बँधी धाक जो बिछुड़ खोती।
 
 
आज तक भी जुड़ी न जोड़े से।
 
आज तक भी जुड़ी न जोड़े से।
 
 
है इसी से थुड़ी थुड़ी होती।
 
है इसी से थुड़ी थुड़ी होती।
  
 
जल गया वह मुँह न क्यों जिससे कि हम।
 
जल गया वह मुँह न क्यों जिससे कि हम।
 
 
जातिहित को भाड़ में हैं झूँकते।
 
जातिहित को भाड़ में हैं झूँकते।
 
 
मुँह छिपा लेवें, मगर मुँह पर भला।
 
मुँह छिपा लेवें, मगर मुँह पर भला।
 
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थूकनेवाले न कैसे थूकते।
थूकनेवाले न वै+से थूकते।
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आज दिन तो हैं कलेजे चिर रहे।
 
आज दिन तो हैं कलेजे चिर रहे।
 
 
क्या हुआ दो चार उँगली जो चिरी।
 
क्या हुआ दो चार उँगली जो चिरी।
 
 
क्यों फिराये आँख फिरती ही नहीं।
 
क्यों फिराये आँख फिरती ही नहीं।
 
 
क्या छुरी अब भी न गरदन पर फिरी।
 
क्या छुरी अब भी न गरदन पर फिरी।
  
 
राह उलटी किस लिए पकड़ी गई।
 
राह उलटी किस लिए पकड़ी गई।
 
 
क्यों घुमाने से नहीं हैं घूमते।
 
क्यों घुमाने से नहीं हैं घूमते।
 
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जो अँगूठा हैं हमें दिखला रहे।
जो ऍंगूठा हैं हमें दिखला रहे।
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क्यों अँगूठा हैं उन्हीं का चूमते।
 
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क्यों ऍंगूठा हैं उन्हीं का चूमते।
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हो सकेगा काम तो कोई नहीं।
 
हो सकेगा काम तो कोई नहीं।
 
 
बात हित की सुन चिटक जाया करें।
 
बात हित की सुन चिटक जाया करें।
 
 
चोट जी को तो लगेगी ही नहीं।
 
चोट जी को तो लगेगी ही नहीं।
 
 
उँगलियों को बैठ चटकाया करें।
 
उँगलियों को बैठ चटकाया करें।
  
हो सकेगी बात वै+से दूसरी।
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हो सकेगी बात कैसे दूसरी।
 
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मुँह भलाई से सदा मोड़ा करें।
 
मुँह भलाई से सदा मोड़ा करें।
 
 
फोड़ पायें तो रहें घर फोड़ते।
 
फोड़ पायें तो रहें घर फोड़ते।
 
 
बैठ कर या उँगलियाँ फोड़ा करें।
 
बैठ कर या उँगलियाँ फोड़ा करें।
  
सूरमापन अगर न धाक रखे।
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सूरमापन अगर न धक रखे।
 
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चाहिए तो चलें न धमकाने।
चाहिए तो चलें न धामकाने।
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जो न तलवार को सकें चमका।
 
जो न तलवार को सकें चमका।
 
 
तो लगें उँगलियाँ न चमकाने।
 
तो लगें उँगलियाँ न चमकाने।
  
 
बात हित की जमी नहीं जी में।
 
बात हित की जमी नहीं जी में।
 
 
पग न पाया बिचारपथ में थम।
 
पग न पाया बिचारपथ में थम।
 
 
किस लिए आज हो गये जड़ हैं।
 
किस लिए आज हो गये जड़ हैं।
 
 
क्या तमाचे जड़े गये हैं कम।
 
क्या तमाचे जड़े गये हैं कम।
  
 
जाति-हित-रुचि जब कि जी में आजमी।
 
जाति-हित-रुचि जब कि जी में आजमी।
 
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बन गई तब काहिली कैसे सगी।
बन गई तब काहिली वै+से सगी।
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लाग से लगते नहीं क्यों काम में।
 
लाग से लगते नहीं क्यों काम में।
 
 
हाथ में तो है नहीं मेहँदी लगी।
 
हाथ में तो है नहीं मेहँदी लगी।
  
 
किस तरह तो हम निरे पत्थर नहीं।
 
किस तरह तो हम निरे पत्थर नहीं।
 
 
चोट जी को जब कि लग पाती नहीं।
 
चोट जी को जब कि लग पाती नहीं।
 
 
देख टुकड़ा जाति का छिनते अगर।
 
देख टुकड़ा जाति का छिनते अगर।
 
 
सैकड़ों टुकड़े हुई छाती नहीं।
 
सैकड़ों टुकड़े हुई छाती नहीं।
  
देस का मुँह गया बहुत वु+म्हला।
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देस का मुँह गया बहुत कुम्हला।
 
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किस तरह मुँह रहा खिला तेरा।
 
किस तरह मुँह रहा खिला तेरा।
 
 
छिल रहा जाति का कलेजा है।
 
छिल रहा जाति का कलेजा है।
 
 
पर कलेजा कहाँ छिला तेरा।
 
पर कलेजा कहाँ छिला तेरा।
  
 
हौसले की गोद में हित हैं पले।
 
हौसले की गोद में हित हैं पले।
 
 
है जहाँ साहस उमंगें हैं वहीं।
 
है जहाँ साहस उमंगें हैं वहीं।
 
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बेदिली कैसे न दिल में घर करें।
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पास दिल है पर दिलेरी है नहीं।
 
पास दिल है पर दिलेरी है नहीं।
  
 
देसहित देख जो नहीं पाते।
 
देसहित देख जो नहीं पाते।
 
 
जातिहित है अगर नहीं भाता।
 
जातिहित है अगर नहीं भाता।
 
 
आँख तो फूट क्यों नहीं जाती।
 
आँख तो फूट क्यों नहीं जाती।
 
 
किस लिए बैठ जी नहीं जाता।
 
किस लिए बैठ जी नहीं जाता।
  
 
जान में जान तो न आयेगी।
 
जान में जान तो न आयेगी।
 
 
आन भी जायगी चली धीमें।
 
आन भी जायगी चली धीमें।
 
 
बात बेजान जाति के हित को।
 
बात बेजान जाति के हित को।
 
 
जो जमाये जमी नहीं जी में।
 
जो जमाये जमी नहीं जी में।
  
 
जाति हित का जाप क्या जपते रहे।
 
जाति हित का जाप क्या जपते रहे।
 
 
देख जो भय का भयानक मुख भगे।
 
देख जो भय का भयानक मुख भगे।
 
 
देस दुख दलने चले क्या दौड़ कर।
 
देस दुख दलने चले क्या दौड़ कर।
 
 
पेट में जो दौड़ने चूहे लगे।
 
पेट में जो दौड़ने चूहे लगे।
  
तब सकेंगे पाल वै+से देस को।
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तब सकेंगे पाल कैसे देस को।
 
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जब कि है परिवार भी पलता नहीं।
 
जब कि है परिवार भी पलता नहीं।
 
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तब चलाये राज कैसे चल सके।
तब चलाये राज वै+से चल सके।
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जब चलाये पेट भी चलता नहीं।
 
जब चलाये पेट भी चलता नहीं।
  
 
है जिसे पेट देस से प्यारा।
 
है जिसे पेट देस से प्यारा।
 
 
जो जने जाति का अहितकारी।
 
जो जने जाति का अहितकारी।
 
 
मर गया वह न क्यों जनमते ही।
 
मर गया वह न क्यों जनमते ही।
 
 
क्यों गई कोख वह नहीं मारी।
 
क्यों गई कोख वह नहीं मारी।
  
 
दौड़ कर के जातिहित - मैदान में।
 
दौड़ कर के जातिहित - मैदान में।
 
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पाँव कैसे वह भला सकता गड़ा।
पाँव वै+से वह भला सकता गड़ा।
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चल दबे पाँवों परग दो चार ही।
 
चल दबे पाँवों परग दो चार ही।
 
 
पाँव दबवाना जिसे अपना पड़ा।
 
पाँव दबवाना जिसे अपना पड़ा।
  
 
किस लिए भाग हैं खड़े होते।
 
किस लिए भाग हैं खड़े होते।
 
 
क्यों सुपथ में न पाँव अड़ पाया।
 
क्यों सुपथ में न पाँव अड़ पाया।
 
 
गड़ गये आप क्यों न लाज लगे।
 
गड़ गये आप क्यों न लाज लगे।
 
 
पाँव गाड़े अगर न गड़ पाया।
 
पाँव गाड़े अगर न गड़ पाया।
  
 
देस मिल जाय धूल में तो क्या।
 
देस मिल जाय धूल में तो क्या।
 
 
भूल है जो उन्हें कहें अहदी।
 
भूल है जो उन्हें कहें अहदी।
 
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वे उठें फूल सेज तज कैसे।
वे उठें फूल सेज तज वै+से।
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पाँव की जायगी बिगड़ मेंहदी।
 
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पाँव की जायगी बिगड़ मेहँदी।
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जी भलाई के लिए है फूलता।
 
जी भलाई के लिए है फूलता।
 
 
तो समय पर क्यों विफल है हो रहा।
 
तो समय पर क्यों विफल है हो रहा।
 
 
भय हुए फूले समाते आप हैं।
 
भय हुए फूले समाते आप हैं।
 
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पाँव कैसे फूल जाता तो रहा।
पाँव वै+से फूल जाता तो रहा।
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काल के गाल में न कौन गया।
 
काल के गाल में न कौन गया।
 
 
अब कहाँ वेणु, कंस, रावन हैं।
 
अब कहाँ वेणु, कंस, रावन हैं।
 
 
छोड़ कर जाति-पाँव पावन क्यों।
 
छोड़ कर जाति-पाँव पावन क्यों।
 
 
पूजते पाँव हम अपावन हैं।
 
पूजते पाँव हम अपावन हैं।
  
 
किस लिए है आँख पर परदा पड़ा।
 
किस लिए है आँख पर परदा पड़ा।
 
 
दिन ब दिन है उठ रहा परदा ढका।
 
दिन ब दिन है उठ रहा परदा ढका।
 
 
लात पर है लात लगती जा रही।
 
लात पर है लात लगती जा रही।
 
 
छूट तलवे का न सहलाना सका।
 
छूट तलवे का न सहलाना सका।
  
 
देसहित और जातिहित पथ में।
 
देसहित और जातिहित पथ में।
 
 
चाव से जो नहीं सके चल वे।
 
चाव से जो नहीं सके चल वे।
 
 
तो तुरत जाँय धूल ही में मिल।
 
तो तुरत जाँय धूल ही में मिल।
 
 
जाँय गल पाँव, जाँय जल तलवे।
 
जाँय गल पाँव, जाँय जल तलवे।
 
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15:08, 22 मार्च 2014 के समय का अवतरण

बात चिकनी कपट भरी कह कर।
जब कि वह जाति पर बला लावे।
जब रही खींचतान में पड़ती।
जीभ तब खैंच क्यों न जी जावे।

पेट की चापलूसियों में पड़।
गालियाँ जो कि जाति को देवें।
चाहिए तो बिना रुके हिचके।
जीभ उन की निकाल ही लेवें।

जो कि बेढंग चल करे चौपट।
चाहिए ऐंच कर उसे दम लें।
जाति की नाक कट गई जिस से।
काट उस जीभ को न क्यों हम लें।

वार पर वार कर रही जब थी।
तब भला किस तरह, तरह देते।
पड़ गई जाति गाढ़ में जिस से।
काढ़ उस जीभ को न क्यों लेते।

जाति के काम जब नहीं आते।
डींग हम मारते रहे तब क्या।
जब कि फटकार ही रही पड़ती।
मूँछ फटकारते रहे तब क्या।

जाति के देख देख कर दुखड़े।
जो न बेताब बन उन्हें पूछें।
रोंगटे जो खड़े न हो जावें।
तो रहीं क्या खड़ी खड़ी मूँछें।

जाग तब कैसे सकेंगे, ज्ञान की।
जोत जी में जब कि जगती ही नहीं।
तब भला कैसे हमें जी से लगे।
बात लगती जब कि लगती ही नहीं।

है बहक इतनी कि कितनी बात को।
ताड़ कर के भी नहीं हम ताड़ते।
है हमारी बात की यह बानगी।
हैं बना कर बात बात बिगाड़ते।

क्यों न बल को तौल लें, होगा बुरा।
बात जी में बेठिकाने की ठने।
क्या किसी की हम गढ़ेंगे हव्वियाँ।
बात गढ़ लेवें अगर गढ़ते बने।

जीभ सड़ जाती न जाने क्यों नहीं।
बेअटक कहते हुए बातें सड़ी।
बात सीधी किस तरह से तब कहें।
बाँट में जब बात टेढ़ी ही पड़ी।

दूर की लेंगे बकेंगे बहक कर।
काम के हित जी हुआ बै ही नहीं।
किस तरह लेंगे खिलौना चाँद का।
बात है, करतूत कुछ है ही नहीं।

जाति को देख कर पड़ा दुख में।
अब चलेंगे न हम मदद देने।
पड़ गये काम काइयाँपन कर।
लग गये हैं जँभाइयाँ लेने।

है उन्हें छुट्टी कहाँ जो कुछ करें।
क्या हुआ जो आबरू है जा रही।
लें अगर अँगड़ाइयाँ हैं ले रहे।
लें जँभा जो है जँभाई आ रही।

जाति औ प्रीति की अजब जोड़ी।
है बँधी धाक जो बिछुड़ खोती।
आज तक भी जुड़ी न जोड़े से।
है इसी से थुड़ी थुड़ी होती।

जल गया वह मुँह न क्यों जिससे कि हम।
जातिहित को भाड़ में हैं झूँकते।
मुँह छिपा लेवें, मगर मुँह पर भला।
थूकनेवाले न कैसे थूकते।

आज दिन तो हैं कलेजे चिर रहे।
क्या हुआ दो चार उँगली जो चिरी।
क्यों फिराये आँख फिरती ही नहीं।
क्या छुरी अब भी न गरदन पर फिरी।

राह उलटी किस लिए पकड़ी गई।
क्यों घुमाने से नहीं हैं घूमते।
जो अँगूठा हैं हमें दिखला रहे।
क्यों अँगूठा हैं उन्हीं का चूमते।

हो सकेगा काम तो कोई नहीं।
बात हित की सुन चिटक जाया करें।
चोट जी को तो लगेगी ही नहीं।
उँगलियों को बैठ चटकाया करें।

हो सकेगी बात कैसे दूसरी।
मुँह भलाई से सदा मोड़ा करें।
फोड़ पायें तो रहें घर फोड़ते।
बैठ कर या उँगलियाँ फोड़ा करें।

सूरमापन अगर न धक रखे।
चाहिए तो चलें न धमकाने।
जो न तलवार को सकें चमका।
तो लगें उँगलियाँ न चमकाने।

बात हित की जमी नहीं जी में।
पग न पाया बिचारपथ में थम।
किस लिए आज हो गये जड़ हैं।
क्या तमाचे जड़े गये हैं कम।

जाति-हित-रुचि जब कि जी में आजमी।
बन गई तब काहिली कैसे सगी।
लाग से लगते नहीं क्यों काम में।
हाथ में तो है नहीं मेहँदी लगी।

किस तरह तो हम निरे पत्थर नहीं।
चोट जी को जब कि लग पाती नहीं।
देख टुकड़ा जाति का छिनते अगर।
सैकड़ों टुकड़े हुई छाती नहीं।

देस का मुँह गया बहुत कुम्हला।
किस तरह मुँह रहा खिला तेरा।
छिल रहा जाति का कलेजा है।
पर कलेजा कहाँ छिला तेरा।

हौसले की गोद में हित हैं पले।
है जहाँ साहस उमंगें हैं वहीं।
बेदिली कैसे न दिल में घर करें।
पास दिल है पर दिलेरी है नहीं।

देसहित देख जो नहीं पाते।
जातिहित है अगर नहीं भाता।
आँख तो फूट क्यों नहीं जाती।
किस लिए बैठ जी नहीं जाता।

जान में जान तो न आयेगी।
आन भी जायगी चली धीमें।
बात बेजान जाति के हित को।
जो जमाये जमी नहीं जी में।

जाति हित का जाप क्या जपते रहे।
देख जो भय का भयानक मुख भगे।
देस दुख दलने चले क्या दौड़ कर।
पेट में जो दौड़ने चूहे लगे।

तब सकेंगे पाल कैसे देस को।
जब कि है परिवार भी पलता नहीं।
तब चलाये राज कैसे चल सके।
जब चलाये पेट भी चलता नहीं।

है जिसे पेट देस से प्यारा।
जो जने जाति का अहितकारी।
मर गया वह न क्यों जनमते ही।
क्यों गई कोख वह नहीं मारी।

दौड़ कर के जातिहित - मैदान में।
पाँव कैसे वह भला सकता गड़ा।
चल दबे पाँवों परग दो चार ही।
पाँव दबवाना जिसे अपना पड़ा।

किस लिए भाग हैं खड़े होते।
क्यों सुपथ में न पाँव अड़ पाया।
गड़ गये आप क्यों न लाज लगे।
पाँव गाड़े अगर न गड़ पाया।

देस मिल जाय धूल में तो क्या।
भूल है जो उन्हें कहें अहदी।
वे उठें फूल सेज तज कैसे।
पाँव की जायगी बिगड़ मेंहदी।

जी भलाई के लिए है फूलता।
तो समय पर क्यों विफल है हो रहा।
भय हुए फूले समाते आप हैं।
पाँव कैसे फूल जाता तो रहा।

काल के गाल में न कौन गया।
अब कहाँ वेणु, कंस, रावन हैं।
छोड़ कर जाति-पाँव पावन क्यों।
पूजते पाँव हम अपावन हैं।

किस लिए है आँख पर परदा पड़ा।
दिन ब दिन है उठ रहा परदा ढका।
लात पर है लात लगती जा रही।
छूट तलवे का न सहलाना सका।

देसहित और जातिहित पथ में।
चाव से जो नहीं सके चल वे।
तो तुरत जाँय धूल ही में मिल।
जाँय गल पाँव, जाँय जल तलवे।