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"छींक / हरिऔध" के अवतरणों में अंतर

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पड़ किसी की राह में रोड़े गये।
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औ गये काँटे बिखर कितने कहीं।
 
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जो फला फूला हुआ कुम्हला गया।
जो फला फूला हुआ वु+म्हला गया।
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यह भला था छींक आती ही नहीं।
 
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क्यों निकल आई लजाई क्यों नहीं।
 
क्यों निकल आई लजाई क्यों नहीं।
 
 
क्यों सगे पर यों बिपद ढाती रही।
 
क्यों सगे पर यों बिपद ढाती रही।
 
 
तब भला था, थी जहाँ, रहती वहीं।
 
तब भला था, थी जहाँ, रहती वहीं।
 
 
छींक जब तू नाक कटवाती रही।
 
छींक जब तू नाक कटवाती रही।
  
 
राह खोटी कर किसी की चाह को।
 
राह खोटी कर किसी की चाह को।
 
 
मत अनाड़ी हाथ की दे गेंद कर।
 
मत अनाड़ी हाथ की दे गेंद कर।
 
 
छरछराहट को बढ़ाती आन तू।
 
छरछराहट को बढ़ाती आन तू।
 
 
छींक! छाती में किसी मत छेद कर।  
 
छींक! छाती में किसी मत छेद कर।  
 
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11:15, 19 मार्च 2014 के समय का अवतरण

पड़ किसी की राह में रोड़े गये।
औ गये काँटे बिखर कितने कहीं।
जो फला फूला हुआ कुम्हला गया।
यह भला था छींक आती ही नहीं।

क्यों निकल आई लजाई क्यों नहीं।
क्यों सगे पर यों बिपद ढाती रही।
तब भला था, थी जहाँ, रहती वहीं।
छींक जब तू नाक कटवाती रही।

राह खोटी कर किसी की चाह को।
मत अनाड़ी हाथ की दे गेंद कर।
छरछराहट को बढ़ाती आन तू।
छींक! छाती में किसी मत छेद कर।