"चालाक लोग / हरिऔध" के अवतरणों में अंतर
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− | + | जी चुरायें, करें न हित जी से। | |
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जाति को क्यों जवाब दें सूखे। | जाति को क्यों जवाब दें सूखे। | ||
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नाम पाकर नमकहराम न हों। | नाम पाकर नमकहराम न हों। | ||
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नाम बेंचें न नाम के भूखे। | नाम बेंचें न नाम के भूखे। | ||
जो हितू बन बना बना बातें। | जो हितू बन बना बना बातें। | ||
− | + | जाति-हित के लिए गये बीछे। | |
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वे करें हित न तो अहित न करें। | वे करें हित न तो अहित न करें। | ||
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हों न बदनाम नाम के पीछे। | हों न बदनाम नाम के पीछे। | ||
वह रसातल क्यों चला जाता नहीं। | वह रसातल क्यों चला जाता नहीं। | ||
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देस - हित जिसकी बतोलों में सना। | देस - हित जिसकी बतोलों में सना। | ||
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जो बिगाड़े बात बनती जाति की। | जो बिगाड़े बात बनती जाति की। | ||
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बात रखने के लिए बातें बना। | बात रखने के लिए बातें बना। | ||
क्यों थपेड़े उन्हें नहीं लगते। | क्यों थपेड़े उन्हें नहीं लगते। | ||
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जो न थे बन बखेड़िये डरते। | जो न थे बन बखेड़िये डरते। | ||
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जाति - हित के लिए खड़े हो कर। | जाति - हित के लिए खड़े हो कर। | ||
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जो बखेड़े रहे खड़े करते। | जो बखेड़े रहे खड़े करते। | ||
जो भली राह है हमें भूली। | जो भली राह है हमें भूली। | ||
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तो बुरे पंथ में न पग देवें। | तो बुरे पंथ में न पग देवें। | ||
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बन लुटेरे न जाति को लूटें। | बन लुटेरे न जाति को लूटें। | ||
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कर ठगी जाति को न ठग देवें। | कर ठगी जाति को न ठग देवें। | ||
कर दिखायें उसे कहें जो हम। | कर दिखायें उसे कहें जो हम। | ||
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जीभ मुँह में कभी नहीं दो हो। | जीभ मुँह में कभी नहीं दो हो। | ||
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है बुरी बात ढोंग बहुरंगी। | है बुरी बात ढोंग बहुरंगी। | ||
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देस - हित - रंग में रँगी जो हो। | देस - हित - रंग में रँगी जो हो। | ||
क्यों हमारी कपट - भरी करनी। | क्यों हमारी कपट - भरी करनी। | ||
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जाति - सिर के लिए पसेरी हो। | जाति - सिर के लिए पसेरी हो। | ||
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देस - हित के लिए चले मचले। | देस - हित के लिए चले मचले। | ||
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चाल भूचाल सी न मेरी हो। | चाल भूचाल सी न मेरी हो। | ||
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19:26, 23 मार्च 2014 के समय का अवतरण
जी चुरायें, करें न हित जी से।
जाति को क्यों जवाब दें सूखे।
नाम पाकर नमकहराम न हों।
नाम बेंचें न नाम के भूखे।
जो हितू बन बना बना बातें।
जाति-हित के लिए गये बीछे।
वे करें हित न तो अहित न करें।
हों न बदनाम नाम के पीछे।
वह रसातल क्यों चला जाता नहीं।
देस - हित जिसकी बतोलों में सना।
जो बिगाड़े बात बनती जाति की।
बात रखने के लिए बातें बना।
क्यों थपेड़े उन्हें नहीं लगते।
जो न थे बन बखेड़िये डरते।
जाति - हित के लिए खड़े हो कर।
जो बखेड़े रहे खड़े करते।
जो भली राह है हमें भूली।
तो बुरे पंथ में न पग देवें।
बन लुटेरे न जाति को लूटें।
कर ठगी जाति को न ठग देवें।
कर दिखायें उसे कहें जो हम।
जीभ मुँह में कभी नहीं दो हो।
है बुरी बात ढोंग बहुरंगी।
देस - हित - रंग में रँगी जो हो।
क्यों हमारी कपट - भरी करनी।
जाति - सिर के लिए पसेरी हो।
देस - हित के लिए चले मचले।
चाल भूचाल सी न मेरी हो।