"धर्म / हरिऔध" के अवतरणों में अंतर
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जोत फूटी गया अँधेरा टल। | जोत फूटी गया अँधेरा टल। | ||
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हो गई सूझ-सूझ पाया धन। | हो गई सूझ-सूझ पाया धन। | ||
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दूर जन-आँख-मल हुआ जिस से। | दूर जन-आँख-मल हुआ जिस से। | ||
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धर्म है वह बड़ा बिमल अंजन। | धर्म है वह बड़ा बिमल अंजन। | ||
रह सका पी जिसे जगत का रस। | रह सका पी जिसे जगत का रस। | ||
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रस - भरा वह अमोल प्याला है। | रस - भरा वह अमोल प्याला है। | ||
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जल रहे जीव पा जिसे न जले। | जल रहे जीव पा जिसे न जले। | ||
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धर्म - जल - सोत वह निराला है। | धर्म - जल - सोत वह निराला है। | ||
है सकल जीव को सुखी करता। | है सकल जीव को सुखी करता। | ||
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रस समय पर बरस बहुत न्यारा। | रस समय पर बरस बहुत न्यारा। | ||
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है भली नीति - चाँदनी जिस की। | है भली नीति - चाँदनी जिस की। | ||
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धर्म है चाँद वह बड़ा प्यारा। | धर्म है चाँद वह बड़ा प्यारा। | ||
− | छाँह प्यारी सुहावने | + | छाँह प्यारी सुहावने पत्ते। |
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डहडही डालियाँ तना औंधा। | डहडही डालियाँ तना औंधा। | ||
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हैं भले फूल फल भरे जिस में। | हैं भले फूल फल भरे जिस में। | ||
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धर्म है वह हरा भरा पौधा। | धर्म है वह हरा भरा पौधा। | ||
तो न बनता सुहावना सोना। | तो न बनता सुहावना सोना। | ||
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औ बड़े काम का न कहलाता। | औ बड़े काम का न कहलाता। | ||
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जीव - लोहा न लौहपन तजता। | जीव - लोहा न लौहपन तजता। | ||
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धर्म - पारस न जो परस पाता। | धर्म - पारस न जो परस पाता। | ||
ज्ञान - जल का सुहावना बादल। | ज्ञान - जल का सुहावना बादल। | ||
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प्रेम - रस का लुभावना प्याला। | प्रेम - रस का लुभावना प्याला। | ||
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है भले भाव - फूल का पौधा। | है भले भाव - फूल का पौधा। | ||
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धर्म है भक्ति - बेलि का थाला। | धर्म है भक्ति - बेलि का थाला। | ||
जो कि निर्जीव को सजीव करें। | जो कि निर्जीव को सजीव करें। | ||
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वह उन्हीं बूटियों - भरा बन है। | वह उन्हीं बूटियों - भरा बन है। | ||
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धर्म है जन समाज का जीवन। | धर्म है जन समाज का जीवन। | ||
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जाति - हित के लिए सजीवन है। | जाति - हित के लिए सजीवन है। | ||
धर्म पाला कलह कमल का है। | धर्म पाला कलह कमल का है। | ||
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रंज मल के निमित्त है जल कल। | रंज मल के निमित्त है जल कल। | ||
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है पवन बेग बैर बादल का। | है पवन बेग बैर बादल का। | ||
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लाग की आग के लिए है जल। | लाग की आग के लिए है जल। | ||
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16:24, 24 मार्च 2014 के समय का अवतरण
जोत फूटी गया अँधेरा टल।
हो गई सूझ-सूझ पाया धन।
दूर जन-आँख-मल हुआ जिस से।
धर्म है वह बड़ा बिमल अंजन।
रह सका पी जिसे जगत का रस।
रस - भरा वह अमोल प्याला है।
जल रहे जीव पा जिसे न जले।
धर्म - जल - सोत वह निराला है।
है सकल जीव को सुखी करता।
रस समय पर बरस बहुत न्यारा।
है भली नीति - चाँदनी जिस की।
धर्म है चाँद वह बड़ा प्यारा।
छाँह प्यारी सुहावने पत्ते।
डहडही डालियाँ तना औंधा।
हैं भले फूल फल भरे जिस में।
धर्म है वह हरा भरा पौधा।
तो न बनता सुहावना सोना।
औ बड़े काम का न कहलाता।
जीव - लोहा न लौहपन तजता।
धर्म - पारस न जो परस पाता।
ज्ञान - जल का सुहावना बादल।
प्रेम - रस का लुभावना प्याला।
है भले भाव - फूल का पौधा।
धर्म है भक्ति - बेलि का थाला।
जो कि निर्जीव को सजीव करें।
वह उन्हीं बूटियों - भरा बन है।
धर्म है जन समाज का जीवन।
जाति - हित के लिए सजीवन है।
धर्म पाला कलह कमल का है।
रंज मल के निमित्त है जल कल।
है पवन बेग बैर बादल का।
लाग की आग के लिए है जल।