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"उतरे नहीं ताल पर पंछी / कैलाश गौतम" के अवतरणों में अंतर
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+ | छाँह न बोली | ||
+ | ऐसे मोड़ मिले । | ||
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− | + | मन दो टूक हुआ है | |
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− | रात | + | |
− | आँगन में सौ-सौ | + | |
− | तारे टूट | + |
12:11, 4 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
उतरे नहीं ताल पर पंछी
बादल नहीं घिरे
हम बंजारे
मारे-मारे
दिन भर आज फिरे ।
गीत न फूटा
हँसी न लौटी
सब कुछ मौन रहा,
पगडंडी पर आगे-आगे
जाने कौन रहा
हवा न डोली
छाँह न बोली
ऐसे मोड़ मिले ।
आर-पार का न्योता देकर
मौसम चला गया
हिरन अभागा उसी रेत में
फिर-फिर छला गया
प्यासे ही रह गए
हमारे
पाटल नहीं खिले ।
मन दो टूक हुआ है
सपने
चकनाचूर हुए
जितनी दूर नहीं सोचे थे
उतनी दूर हुए
रात गए
आँगन में सौ-सौ
तारे टूट गिरे ।