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♦ रचनाकार: अज्ञात
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बाजार बकेंदी बरफी
मैंनू लैंदे निक्की जिही चरखी
ते दुखाँ दीया पूणीयाँ
जीवें ढोला !
ढोल जानी !
साडी गली आवें तैंडी मेहरबानी !
भावार्थ
--'बाज़ार में बरफ़ी बिकती है
मुझे छोटी-सी चरखी ले दो
और दुखों की पुनियाँ
जीते रहो, ढोला !
ओ ढोल, ओ प्राणधन !
तुम हमारी गली में आओ तो तुम्हारी मेहरबानी हो !'