भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"धरती से सोना उगाने वाले / ब्रजमोहन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ब्रजमोहन |संग्रह=दुख जोड़ेंगे हमें / ब्रजमोहन }} धरती स...)
 
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=दुख जोड़ेंगे हमें / ब्रजमोहन
 
|संग्रह=दुख जोड़ेंगे हमें / ब्रजमोहन
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatGeet}}
 +
<poem>
 
धरती से सोना उगाने वाले भाई रे
 
धरती से सोना उगाने वाले भाई रे
 
 
माटी से हीरा बनाने वाले भाई रे
 
माटी से हीरा बनाने वाले भाई रे
 
 
अपना पसीना बहाने वाले भाई रे
 
अपना पसीना बहाने वाले भाई रे
 
 
उठ तेरी मेहनत को लूटे है कसाई रे...
 
उठ तेरी मेहनत को लूटे है कसाई रे...
 
  
 
मिल-कोठी-कारें ये सड़कें ये इंजन
 
मिल-कोठी-कारें ये सड़कें ये इंजन
 
 
इन सब में तेरी ही मेहनत की धड़कन
 
इन सब में तेरी ही मेहनत की धड़कन
 
 
तेरे ही हाथों ने दुनिया बनाई
 
तेरे ही हाथों ने दुनिया बनाई
 
 
तूने ही भरपेट रोटी न खाई
 
तूने ही भरपेट रोटी न खाई
 
 
हँसी तेरे होठों की किसने चुराई रे...
 
हँसी तेरे होठों की किसने चुराई रे...
 
  
 
धरती भी तेरी ये अम्बर भी तेरा
 
धरती भी तेरी ये अम्बर भी तेरा
 
 
तुझ को ही लाना है अपना सवेरा  
 
तुझ को ही लाना है अपना सवेरा  
 
+
तू ही अँधेरों में सूरज है भाई!
तू ही अंधेरों में सूरज है भाई!
+
 
+
 
तू ही लड़ेगा सुबह की लड़ाई
 
तू ही लड़ेगा सुबह की लड़ाई
 
 
तभी सारी दुनिया ये लेगी अंगड़ाई रे...
 
तभी सारी दुनिया ये लेगी अंगड़ाई रे...
 +
</poem>

12:54, 19 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण

धरती से सोना उगाने वाले भाई रे
माटी से हीरा बनाने वाले भाई रे
अपना पसीना बहाने वाले भाई रे
उठ तेरी मेहनत को लूटे है कसाई रे...

मिल-कोठी-कारें ये सड़कें ये इंजन
इन सब में तेरी ही मेहनत की धड़कन
तेरे ही हाथों ने दुनिया बनाई
तूने ही भरपेट रोटी न खाई
हँसी तेरे होठों की किसने चुराई रे...

धरती भी तेरी ये अम्बर भी तेरा
तुझ को ही लाना है अपना सवेरा
तू ही अँधेरों में सूरज है भाई!
तू ही लड़ेगा सुबह की लड़ाई
तभी सारी दुनिया ये लेगी अंगड़ाई रे...