भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"घन कुन्तल-मेघ घिरे / राजेन्द्र गौतम" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 15: | पंक्ति 15: | ||
ऐसी रस-धार बही | ऐसी रस-धार बही | ||
मन डूबे, डूब तिरे | मन डूबे, डूब तिरे | ||
− | + | चेतनता तन की हर | |
− | + | रहा अन्धकार उतर | |
अम्बर, भू-आँगन भर | अम्बर, भू-आँगन भर | ||
यौवन की उठे लहर | यौवन की उठे लहर | ||
ज्वार राग का उमडा | ज्वार राग का उमडा | ||
बन्धन-तट टूट गिरे | बन्धन-तट टूट गिरे | ||
− | + | रोम-रोम रोमांचित | |
− | + | तन्द्रिल, विश्लथ, कम्पित | |
− | + | हास-सुधा-उर-सिंचित | |
हुए अधर-पुट कुंचित | हुए अधर-पुट कुंचित | ||
दल के दल शतदल के | दल के दल शतदल के | ||
आनन पर आन फिरें | आनन पर आन फिरें | ||
− | + | जब कुन्तल-मेघ घिरे | |
− | + | घन कुन्तल-मेघ घिरे | |
</poem> | </poem> |
23:42, 1 जून 2014 के समय का अवतरण
दिंग्नूपुर झनक उठे
घन कुन्तल-मेघ घिरे
कब सुध-बुध क्षण-पल की
चम-चम-चम जब चमकी
चंचल-चंचल जल की
हीरक-सी छवि, छलकी
ऐसी रस-धार बही
मन डूबे, डूब तिरे
चेतनता तन की हर
रहा अन्धकार उतर
अम्बर, भू-आँगन भर
यौवन की उठे लहर
ज्वार राग का उमडा
बन्धन-तट टूट गिरे
रोम-रोम रोमांचित
तन्द्रिल, विश्लथ, कम्पित
हास-सुधा-उर-सिंचित
हुए अधर-पुट कुंचित
दल के दल शतदल के
आनन पर आन फिरें
जब कुन्तल-मेघ घिरे
घन कुन्तल-मेघ घिरे