भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दिनारंभ / माया दर्पण / श्रीकांत वर्मा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीकांत वर्मा }} एक मारवाड़ी मुनीम जमुहाई लेता हुआ ...) |
|||
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=श्रीकांत वर्मा | |रचनाकार=श्रीकांत वर्मा | ||
+ | |संग्रह=माया दर्पण / श्रीकांत वर्मा | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatKavita}} | |
+ | <poem> | ||
एक मारवाड़ी मुनीम जमुहाई लेता हुआ | एक मारवाड़ी मुनीम जमुहाई लेता हुआ | ||
− | |||
कुंजी का गुच्छा खोंसे | कुंजी का गुच्छा खोंसे | ||
− | |||
अपनी टेंट में | अपनी टेंट में | ||
− | |||
चलता चला चलता है दुकान की ओर | चलता चला चलता है दुकान की ओर | ||
− | |||
बही खोल लिखता है | बही खोल लिखता है | ||
− | + | श्री गणेशाय नमः, शुभ-लाभ। | |
− | श्री गणेशाय नमः, शुभ- | + | |
− | + | ||
जमुहाई लेकर फिर एक बार जोरसे | जमुहाई लेकर फिर एक बार जोरसे | ||
− | |||
कहता है- | कहता है- | ||
− | + | ऊँ नमः शिवाय! | |
− | ऊँ नमः शिवाय ! | + | |
− | + | ||
− | + | ||
पटरी पर खड़ी एक गाय | पटरी पर खड़ी एक गाय | ||
− | |||
रँभाती है | रँभाती है | ||
− | |||
गली से एक स्त्री | गली से एक स्त्री | ||
− | |||
हाथ में झा़डू | हाथ में झा़डू | ||
− | |||
सिर पर टोकरा लिये | सिर पर टोकरा लिये | ||
− | + | आती है। | |
− | आती | + | |
− | + | ||
− | |||
सड़क पर धूल, आँख में कीचड़ | सड़क पर धूल, आँख में कीचड़ | ||
− | |||
पेड़ पर धूप | पेड़ पर धूप | ||
− | |||
धोती पर दाग | धोती पर दाग | ||
− | |||
चौके में धुआँ | चौके में धुआँ | ||
− | |||
अचानक हर घर में | अचानक हर घर में | ||
− | |||
सुबह | सुबह | ||
− | + | फट पड़ती है। | |
− | फट पड़ती | + | |
− | + | ||
एक बिल्ली मुँडेर पर | एक बिल्ली मुँडेर पर | ||
− | |||
बैठी हुई | बैठी हुई | ||
− | |||
दूसरी बिल्ली से | दूसरी बिल्ली से | ||
− | |||
झगड़ती है | झगड़ती है | ||
− | |||
− | + | दुकानें खुलती हैं। | |
− | दुकानें खुलती | + | </poem> |
16:40, 1 जनवरी 2010 के समय का अवतरण
एक मारवाड़ी मुनीम जमुहाई लेता हुआ
कुंजी का गुच्छा खोंसे
अपनी टेंट में
चलता चला चलता है दुकान की ओर
बही खोल लिखता है
श्री गणेशाय नमः, शुभ-लाभ।
जमुहाई लेकर फिर एक बार जोरसे
कहता है-
ऊँ नमः शिवाय!
पटरी पर खड़ी एक गाय
रँभाती है
गली से एक स्त्री
हाथ में झा़डू
सिर पर टोकरा लिये
आती है।
सड़क पर धूल, आँख में कीचड़
पेड़ पर धूप
धोती पर दाग
चौके में धुआँ
अचानक हर घर में
सुबह
फट पड़ती है।
एक बिल्ली मुँडेर पर
बैठी हुई
दूसरी बिल्ली से
झगड़ती है
दुकानें खुलती हैं।