भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"वही सफलता पाता है / प्रभुदयाल श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 13: | पंक्ति 13: | ||
बगिया में जो आम लगा है, | बगिया में जो आम लगा है, | ||
− | उससे पुश्तैनी नाता | + | उससे पुश्तैनी नाता| |
कहो बुआ खट्टी इमली को, | कहो बुआ खट्टी इमली को, | ||
मजा तब बहुत आता है| | मजा तब बहुत आता है| |
10:13, 30 जून 2014 के समय का अवतरण
पीपल मेरे पूज्य पिताजी,
तुलसी मेरी माता है|
बरगद को दादा कहने से,
मन पुलकित हो जाता है|
बगिया में जो आम लगा है,
उससे पुश्तैनी नाता|
कहो बुआ खट्टी इमली को,
मजा तब बहुत आता है|
घर में लगा बबूल पुराना,
वह रिश्ते का चाचा है|
“मैं हूँ बेटे मामा तेरा,”
यह कटहल चिल्लाता है|
आंगन में अमरूद लगा है,
मंद मंद मुस्कराता है|
उसे बड़ा भाई कह दो तो,
ढेरों फल टपकाता है|
यह खजूर कितना ऊंचा है,
नहीं काम कुछ आता है|
पर उसको मौसा कह दो ,
मीठे खजूर खिलवाता है|
अब देखो यह गोल मुसंबी,
इसका पेड़ लजाता है|
पर इसका मीठा खट्टा फल,
दादी सा मुस्काता है|
जिन लोगों का पेड़ों से,
घर का रिश्ता हो जाता है|
पेड़ बचाने की मुहीम में,
वही सफलता पाता है|