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"आसमान के पार स्वर्ग है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

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आसमान के पार स्वर्ग है
 
आसमान के पार स्वर्ग है
 
सोच गया घर से
 
सोच गया घर से
जाकर देखा वहाँ अँधेरा दीपक को तरसे
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जाकर देखा  
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वहाँ अँधेरा दीपक को तरसे
  
जीवन का पौधा उगता हिमरेखा के नीचे  
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जीवन का पौधा उगता  
धार प्रेम की जहाँ नदी बन धरती को सींचे
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हिमरेखा के नीचे  
आसमान से आम आदमी
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धार प्रेम की  
लगता है चींटी
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जहाँ नदी बन धरती को सींचे
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आसमान से आम आदमी लगता है चींटी
 
नभ केवल रंगीन भरम है
 
नभ केवल रंगीन भरम है
 
सच्चाई मिट्टी
 
सच्चाई मिट्टी
  
गिर जाता जो अंबर से वो मरता है डर से
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गिर जाता जो अंबर से  
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वो मरता है
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डर से
  
अंबर तक यदि जाना है तो चिड़िया बन जाओ
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अंबर तक यदि जाना है तो  
दिन भर नभ की सैर करो पर संध्या घर आओ
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चिड़िया बन जाओ
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दिन भर नभ की सैर करो  
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पर संध्या घर आओ
 
आसमान पर कहाँ बसा है
 
आसमान पर कहाँ बसा है
 
कभी किसी का घर
 
कभी किसी का घर
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टूटे उसके पर
 
टूटे उसके पर
  
फैलो, काम नहीं चलता ऊँचा उठने भर से
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फैलो  
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काम नहीं चलता ऊँचा उठने भर से
 
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09:52, 21 जनवरी 2019 के समय का अवतरण

आसमान के पार स्वर्ग है
सोच गया घर से
जाकर देखा
वहाँ अँधेरा दीपक को तरसे

जीवन का पौधा उगता
हिमरेखा के नीचे
धार प्रेम की
जहाँ नदी बन धरती को सींचे
आसमान से आम आदमी लगता है चींटी
नभ केवल रंगीन भरम है
सच्चाई मिट्टी

गिर जाता जो अंबर से
वो मरता है
डर से

अंबर तक यदि जाना है तो
चिड़िया बन जाओ
दिन भर नभ की सैर करो
पर संध्या घर आओ
आसमान पर कहाँ बसा है
कभी किसी का घर
ज्यादा जोर लगाया जिसने
टूटे उसके पर

फैलो
काम नहीं चलता ऊँचा उठने भर से