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"सर्दी का गीत / रमेश रंजक" के अवतरणों में अंतर
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मुझको तो भाते हैं जाड़ों के दिन । | मुझको तो भाते हैं जाड़ों के दिन । |
11:04, 19 अगस्त 2014 के समय का अवतरण
मुझको तो भाते हैं जाड़ों के दिन ।
गर्मी में जैसे पहाड़ों के दिन ।।
कहीं बैठ लो धूप लगती नहीं
यह धरती बिचारी सुलगती नहीं
बदन को सुहाती है ठण्डी हवा
मिले जैसे पानी को मीठी दवा
यही मूँगफलियों, सिँघाड़ों के दिन ।
जाड़ों के दिन ।
गर्मी में जैसे पहाड़ों के दिन ।।
मिली धूप की रोशनी काम को
थकन को मिली रात आराम को
यही तो हैं सेहत बनाने के दिन
मदरसों में पढ़ने-पढ़ाने के दिन
सही मायनों में अखाड़ों के दिन ।
जाड़ों के दिन ।
गर्मी में जैसे पहाड़ों के दिन ।।