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"जंगल में रात / महेश उपाध्याय" के अवतरणों में अंतर
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17:29, 21 अगस्त 2014 के समय का अवतरण
चाँदी की चोंच
थके पंखों के बीच दिए
पड़कुलिया झील सो गई
जंगल में रात हो गई
शंखमुखी देह मोड़कर
ठिगनी-सी छाँह के तले
आवाज़ें बाँधते हुए
चोर पाँव धुँधलके चले
डूबी-अनडूबी हँसुली
कितनी स्याही बिलो गई
जंगल में रात हो गई ।