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"नाव बांध कर / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर

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09:31, 28 फ़रवरी 2008 के समय का अवतरण


नाव बांध कर

चला गया है जीवन का मल्लाह;

चढ़ी नदी से

उमड़ रही है बंधी नाव की आह !


भूमि छोड़ कर

चला गया है सूरज का आलोक;

अन्धकार से उमड़ रहा है

खिन्न भूमि का शोक !