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जरूरी नहीं  
 
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जो पढ़ा है तुमने  
 
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पढ़ा सकोगे
 
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जिनके घर  
 
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बने हुए शीशे के  
 
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लगाते पर्दे
 
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तेरी-मेरी है  
 
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बस एक कहानी  
 
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राजा न रानी
 
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प्रभु के लिए  
 
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छप्पन भोग बने  
 
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खाये पुजारी
 
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बड़े दिनों से  
 
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मन है मिलने का  
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समय नहीं
 
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उल्लू के पठ्ठे  
 
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उल्लू नहीं होंगे तो  
 
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भला क्या होंगे
 
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कहने को तो  
 
कहने को तो  
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सफर है सुहाना  
 
सफर है सुहाना  
 +
 
थकते जाना
 
थकते जाना
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कितने कवि  
 
कितने कवि  
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कविता लिखने से  
 
कविता लिखने से  
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हुए पागल
 
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पड़ी लकड़ी  
 
पड़ी लकड़ी  
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जब भी है उठायी  
 
जब भी है उठायी  
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आफ़त आयी
 
आफ़त आयी
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आदेश हुआ  
 
आदेश हुआ  
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महिला हो मुखिया  
 
महिला हो मुखिया  
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कागज़ पर
 
कागज़ पर

11:50, 20 मार्च 2015 के समय का अवतरण

जरूरी नहीं

जो पढ़ा है तुमने

पढ़ा सकोगे


जिनके घर

बने हुए शीशे के

लगाते पर्दे


तेरी-मेरी है

बस एक कहानी

राजा न रानी


प्रभु के लिए

छप्पन भोग बने

खाये पुजारी


बड़े दिनों से

मन है मिलने का

समय नहीं


उल्लू के पठ्ठे

उल्लू नहीं होंगे तो

भला क्या होंगे


कहने को तो

सफर है सुहाना

थकते जाना


कितने कवि

कविता लिखने से

हुए पागल


पड़ी लकड़ी

जब भी है उठायी

आफ़त आयी


आदेश हुआ

महिला हो मुखिया

कागज़ पर