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"या देवि ! / वीरेन डंगवाल" के अवतरणों में अंतर

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माथे पर एक आँख लम्बवत
 
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उसके भी ऊपर मुकुट
 
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बहुत सारे हाथ
 
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मगर दीखते हैं दो ही :
 
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एक में टपकता मुंड ।
 
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दूसरे में टपटपाता खड्ग ।
 
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शेर नीचे खड़ा है ।
 
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दाँत दिखाता मगर सीधा-सादा ।
 
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बग़ल में नदी बह रही लहरदार ।
 
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पहाड़ क्या हैं, रामलीला का पर्दा हैं ।
 
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माता, मैं उस चित्रकार को प्रणाम करता हूँ
 
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जिसने तेरी यह धजा बनाई ।
 
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17:08, 11 अप्रैल 2012 के समय का अवतरण

माथे पर एक आँख लम्बवत
उसके भी ऊपर मुकुट
बहुत सारे हाथ
मगर दीखते हैं दो ही :
एक में टपकता मुंड ।
दूसरे में टपटपाता खड्ग ।
शेर नीचे खड़ा है ।
दाँत दिखाता मगर सीधा-सादा ।
बग़ल में नदी बह रही लहरदार ।
पहाड़ क्या हैं, रामलीला का पर्दा हैं ।
माता, मैं उस चित्रकार को प्रणाम करता हूँ
जिसने तेरी यह धजा बनाई ।