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चक्र के जोड़े कहो कया मोदमय होने को हैं | चक्र के जोड़े कहो कया मोदमय होने को हैं | ||
− | वृत आकृत | + | वृत आकृत कुंकुमारूण कंज-कानन-मित्र है |
पूर्व में प्रकटित हुआ यह चरित जिसके चित्र हैं | पूर्व में प्रकटित हुआ यह चरित जिसके चित्र हैं | ||
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है कहाँ वह भूमि जो रक्खे मेरे चितचोर को | है कहाँ वह भूमि जो रक्खे मेरे चितचोर को | ||
− | बनके | + | बनके दक्षिण-पौन तुम कलियो से भी हो खेलते |
अलि बने मकरन्द की मीठी झड़ी हो झेलते | अलि बने मकरन्द की मीठी झड़ी हो झेलते | ||
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तुम सजावट देखते हो प्रकृति की अनुराग से | तुम सजावट देखते हो प्रकृति की अनुराग से | ||
− | देके ऊषा- | + | देके ऊषा-पट प्रकृति को हो बनाते सहचरी |
भाल के कुंकुम-अरूण की दे दिया बिन्दी खरी | भाल के कुंकुम-अरूण की दे दिया बिन्दी खरी | ||
− | नित्य-नूतन | + | नित्य-नूतन रूप हो उसका बनाकर देखते |
वह तुम्हें है देखती, तुम युगल मिलकर खेलते | वह तुम्हें है देखती, तुम युगल मिलकर खेलते | ||
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12:36, 2 अप्रैल 2015 के समय का अवतरण
सुन्दरी प्रााची विमल ऊषा से मुख धोने को है
पूर्णिमा की रात्रि का शश्ाि अस्त अब होने को है
तारका का निकर अपनी कान्ति सब खोने को है
स्वर्ण-जल से अरूण भी आकाश-पट धोने को है
गा रहे हैं ये विहंगम किसके आने कि कथा
मलय-मारूत भी चला आता है हरने को व्यथा
चन्द्रिका हटने न पाई, आ गई ऊषा भली
कुछ विकसने-सी लगी है कंज की कोमल कली
हैं लताएँ सब खड़ी क्यों कुसुम की माला लिये
क्यों हिमांशु कपूर-सा है तारका-अवली लिये
अरूण की आभा अभी प्राची में दिखलाई पड़ी
कुछ निकलने भी लगी किरणो की सुन्दर-सी लड़ी
देव-दिनकर क्या प्रभा-पूरित उदय होने को हैं
चक्र के जोड़े कहो कया मोदमय होने को हैं
वृत आकृत कुंकुमारूण कंज-कानन-मित्र है
पूर्व में प्रकटित हुआ यह चरित जिसके चित्र हैं
कल्पना कहती है, कन्दुक है महाशिशु-खेल का
जिसका है खिलवाड़ इस संसार में सब मेल का
हाँ, कहो, किस ओर खिंचते ही चले जाओगे तुम
क्या कभी भी खेल तजकर पास भी आओगे तुम
नेत्र को यों मीच करके भागना अच्छा नहीं
देखकर हम खोज लेंगे, तुम रहो चाहे कहीं
पर कहो तो छिपके तुम जाओगे क्यों किस ओर को
है कहाँ वह भूमि जो रक्खे मेरे चितचोर को
बनके दक्षिण-पौन तुम कलियो से भी हो खेलते
अलि बने मकरन्द की मीठी झड़ी हो झेलते
गा रहे श्यामा के स्वर में कुछ रसीले राग से
तुम सजावट देखते हो प्रकृति की अनुराग से
देके ऊषा-पट प्रकृति को हो बनाते सहचरी
भाल के कुंकुम-अरूण की दे दिया बिन्दी खरी
नित्य-नूतन रूप हो उसका बनाकर देखते
वह तुम्हें है देखती, तुम युगल मिलकर खेलते