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"कोकिल / जयशंकर प्रसाद" के अवतरणों में अंतर

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नये कमल-दल-बीच गया किंजल्क-पुंज है
 
नये कमल-दल-बीच गया किंजल्क-पुंज है
 
नया तुम्हारा राग मनोहर श्रुति सुखकारी
 
नया तुम्हारा राग मनोहर श्रुति सुखकारी
नया कण्ठ कमनीय, वाणि वीणा त्र-अनुकारी
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नया कण्ठ कमनीय, वाणि वीणा-अनुकारी
  
 
यद्यपि है अज्ञात ध्वनि कोकिल ! तेरी मोदमय
 
यद्यपि है अज्ञात ध्वनि कोकिल ! तेरी मोदमय
तो भी मन सुनकर हुआ षीतल, षांत, विनोदमय
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तो भी मन सुनकर हुआ शीतल, शांत, विनोदमय
  
 
विकसे नवल रसाल मिले मदमाते मधुकर
 
विकसे नवल रसाल मिले मदमाते मधुकर

16:54, 2 अप्रैल 2015 के समय का अवतरण

नया हृदय है, नया समय है, नया कुंज है
नये कमल-दल-बीच गया किंजल्क-पुंज है
नया तुम्हारा राग मनोहर श्रुति सुखकारी
नया कण्ठ कमनीय, वाणि वीणा-अनुकारी

यद्यपि है अज्ञात ध्वनि कोकिल ! तेरी मोदमय
तो भी मन सुनकर हुआ शीतल, शांत, विनोदमय

विकसे नवल रसाल मिले मदमाते मधुकर
आलबाल मकरन्द-विन्दु से भरे मनोहर
मंजु मलय-हिल्लोल हिलाता है डाली को
मीठे फल के लिये बुलाता जो माली को

बैठे किसलय-पुंज में उसके ही अनुराग से
कोकिल क्या तुम गा रहे, अहा रसीले राग से

कुमुद-बन्धु उल्लास-सहित है नभ में आया
बहुत पूर्व से दौड़ा था, अब अवसर पाया
रूका हुआ है गगन-बीच इस अभिलाषा से
ले निकाल कुछ अर्थ तुम्हारी नव भाषा से

गाओ नव उत्साह से, रूको न पल-भर के लिये
कोकिल ! मलयज पवन में भरने को स्वर के लिये