भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तूतनख़ामेन के लिए-16 / सुधीर सक्सेना" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधीर सक्सेना |संग्रह=काल को भी नहीं पता / सुधीर सक्सेन...)
 
 
पंक्ति 36: पंक्ति 36:
 
ख़ूब ख़ूब इनाम के हक़दार हैं कीमियागर
 
ख़ूब ख़ूब इनाम के हक़दार हैं कीमियागर
  
मकबरे के वास्तुविद
+
मक़बरे के वास्तुविद
  
  
पंक्ति 47: पंक्ति 47:
 
यथावत है
 
यथावत है
  
तूतनख़ामेन
+
तूतनखामेन
  
  
पंक्ति 55: पंक्ति 55:
  
  
मकबरे के अंधेरे से निकल
+
मक़बरे के अंधेरे से निकल
  
 
अजायबघर के उजाले में चला गया
 
अजायबघर के उजाले में चला गया
पंक्ति 69: पंक्ति 69:
  
  
बत्तीस सौ साल मकबरे में सोने के बाद
+
बत्तीस सौ साल मक़बरे में सोने के बाद
  
 
बत्तीस सौ साल अजायबघर में
 
बत्तीस सौ साल अजायबघर में

12:11, 14 जनवरी 2008 के समय का अवतरण

आज भी

बला का ख़ूबसूरत

और दर्शनीय है

तूतनखामेन ।


इतना जीवन्त

कि अब बोला, तब बोला,

अब मुस्काया, तब मुस्काया,


चुटकी बजाई किसी ने

कि आँखें खोल दीं

तूतनखामेन ने


वल्लाह

कमाल है कीमियागरों का

बहुत ख़ूब

ख़ूब ख़ूब इनाम के हक़दार हैं कीमियागर

मक़बरे के वास्तुविद


सब कुछ कमाल का किया

कीमियागरों ने

बत्तीस सौ साल से

यथावत है

तूतनखामेन


वक़्त बदला

बत्तीस सौ साल बाद


मक़बरे के अंधेरे से निकल

अजायबघर के उजाले में चला गया

तूतनखामेन ।


मौत के अंधे घेरे से निकल

मौत के उजले घेरे में चला गया

तूतनखामेन


बत्तीस सौ साल मक़बरे में सोने के बाद

बत्तीस सौ साल अजायबघर में

सोता रहेगा इसी तरह

तूतनखामेन