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"उदास दिन / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर
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08:59, 28 फ़रवरी 2008 के समय का अवतरण
वह उदास दिन
पेंसन पाए चपरासी-सा,
- और जुए में हारे जन-सा,
आपे में खोए गदहे-सा,
- मौन खड़ा है ।
- रवि रोता है
माँ से बिछुड़े हुए पुत्र-सा ।
धूप पड़ी है
परित्यक्त पत्नी-सी कातर ।
- पाँव कटाए
हवा लढ़ी पर लेटे-लेटे,
धीरे-धीरे
अस्पताल की ओर चली है,
- सुबुक रही है !
एक टांग पर खड़े,
- देह का भार उठाए,
ऊँचे-ऊँचे पेड़ पुरातन
वनस्थली में तप करते हैं
जटा बढ़ाए ।