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− | * | + | * कश्यप के तरनि औ तरनि के करन जैसे / गँग |
− | * | + | * नवल नवाब खानख़ाना जू तिहारे डर / गँग |
− | * | + | * राजे भाजे राज छोड़ि, रन छोड़ि राजपूत / गँग |
− | * | + | * गंग गोंछ मौन्छे जमुन, अधर सुरसती राग / गँग |
− | * | + | * बैरम को खानख़ाना बिरच्यो बिराने देश / गँग |
− | * | + | * बाँधिबे को अंजलि, बिलोकबे को काल ढिग / गँग |
− | * | + | * नवल नवाब खानख़ाना जी रिसाने रन / गँग |
− | * | + | * प्रबल प्रचंड बली बैरम के खानख़ाना / गँग |
− | * | + | * ठट्ठा मार्यो खानख़ाना दच्छन अजीम कोका / गँग |
− | * | + | * वैन तद्धैन अदच्छ्न / गँग |
− | * | + | * कुकुम कुम्भि संकुलहि / गँग |
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गँग
जन्म | 1538 |
---|---|
निधन | 1625 |
जन्म स्थान | |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
गँग पदावली, गँग पचीसी तथा गँग रत्नावली | |
विविध | |
मूल नाम गंगाधर। अब्दुर्रहीम खा़नख़ाना और गोस्वामी तुलसीदास के समकालीन रीतिकाल के कवि। | |
जीवन परिचय | |
गँग / परिचय |
प्रतिनिधि रचनाएँ
- फूट गये हीरा की बिकानी कनी हाट हाट / गँग
- उझकि झरोखे झाँकि परम नरम प्यारी / गँग
- मृगनैनी की पीठ पै बेनी लसै / गँग
- करि कै जु सिंगार अटारी चढी / गँग
- लहसुन गाँठ कपूर के नीर में / गँग
- रती बिन साधु, रती बिन संत / गँग
- अब तौ गुनियाँ दुनियाँ को भजै / गँग
- चकित भँवरि रहि गयो / गँग
- बैठी थी सखिन संग / गँग
- झुकत कृपान मयदान ज्यों / गँग
- देखत कै वृच्छन में / गँग
- तारों के तेज में चन्द्र छिपे नहीं / गँग
- माता कहे मेरो पूत सपूत / गँग
- एक बुरो प्रेम को पंथ / गँग
अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना की प्रशंसा में लिखे गए छंद
- नवल नवाब खानख़ाना जू तिहारी त्रास / गँग
- हहर हवेली सुनि सटक समरकंदी / गँग
- कश्यप के तरनि औ तरनि के करन जैसे / गँग
- नवल नवाब खानख़ाना जू तिहारे डर / गँग
- राजे भाजे राज छोड़ि, रन छोड़ि राजपूत / गँग
- गंग गोंछ मौन्छे जमुन, अधर सुरसती राग / गँग
- बैरम को खानख़ाना बिरच्यो बिराने देश / गँग
- बाँधिबे को अंजलि, बिलोकबे को काल ढिग / गँग
- नवल नवाब खानख़ाना जी रिसाने रन / गँग
- प्रबल प्रचंड बली बैरम के खानख़ाना / गँग
- ठट्ठा मार्यो खानख़ाना दच्छन अजीम कोका / गँग
- वैन तद्धैन अदच्छ्न / गँग
- कुकुम कुम्भि संकुलहि / गँग