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"निशा मे सित हर्म्य में सुख नींद... / कालिदास" के अवतरणों में अंतर

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19:01, 29 जनवरी 2008 के समय का अवतरण

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»  निशा मे सित हर्म्य में सुख नींद...

निशा में सित हर्म्य में सुख नींद में सोई सुघरवर

योषिताओं के बदन को बार-बार निहार कातर

चन्द्रमा चिर काल तक, फिर रात्रिक्षय में मलिन होकर

लाज में पाण्डुर हुआ-सा है विलम जाता चकित उर

प्रिये ! आया ग्रीष्म खरतर !