भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"समुद्री नमक / डेविड मेसन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} घास से उ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
|रचनाकार=
+
|रचनाकार=डेविड मेसन
|अनुवादक=
+
|अनुवादक=कल्पना सिंह चिटणीस
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=
 
}}
 
}}
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}
 +
<Poem>
 
घास से उठती आभा चमकती है
 
घास से उठती आभा चमकती है
 
सांसारिकता की ढूह पर।
 
सांसारिकता की ढूह पर।
विलीन हो जायेगी यह भी,
+
विलीन हो जाएगी यह भी,
पर क्या होगा यह सब शीघ्र?
+
पर क्या होगा यह सब शीघ्र ?
  
एक पतंग धागे को सिर हिलाती है।
+
एक पतंग धागे को सिर हिलाती है ।
 
एक बादल बुनता है
 
एक बादल बुनता है
 
उठती-गिरती लहरों के ऊपर,
 
उठती-गिरती लहरों के ऊपर,
दूसरे बादल से जुड़ते हुए।
+
दूसरे बादल से जुड़ते हुए ।
  
 
वे सब एक हुजूम की तरह आगे बढ़ते हैं,
 
वे सब एक हुजूम की तरह आगे बढ़ते हैं,
और आसमान एक क$फन बन जाता है
+
और आसमान एक कफ़न बन जाता है
सूरज के उस्तरे से कट कर।
+
सूरज के उस्तरे से कट कर ।
उसके बाद, कुछ भी करने को बाकी नहीं।
+
उसके बाद, कुछ भी करने को बाकी नहीं ।
  
 
आत्मा, अगर सच में कोई आत्मा है,
 
आत्मा, अगर सच में कोई आत्मा है,
पंक्ति 27: पंक्ति 28:
  
 
विचार-मंथन करता हुआ
 
विचार-मंथन करता हुआ
नया कहने को कुछ नहीं।
+
नया कहने को कुछ नहीं ।
दिन बना घंटों से,
+
दिन बना घण्टों से,
घंटे क्षणों से,
+
घण्टे क्षणों से,
  
पर इनमें से भी कोई अपना नहीं।
+
पर इनमें से भी कोई अपना नहीं ।
 
रेतीली हवा बाड़ों से होकर गुजरती है,
 
रेतीली हवा बाड़ों से होकर गुजरती है,
 
घास की आभा मंद होती है
 
घास की आभा मंद होती है
पर यह भी तो क्षणभंगुर।
+
पर यह भी तो क्षणभंगुर ।
 +
 
 +
और अब यही कविता मूल अमरीकी अँग्रेज़ी में पढ़ें।
 +
 
 +
'''SEA SALT'''
 +
 
 +
Light dazzles from the grass
 +
over the carnal dune,
 +
This too shall come to pass,
 +
but will it happen soon?
 +
 
 +
A kite nods to its string.
 +
A cloud is happening
 +
above the tripping waves,
 +
joined by another cloud.
 +
 
 +
They are a crowd that moves.
 +
The sky becomes a shroud
 +
cut by a blade of sun.
 +
There’s nothing to be done.
 +
 
 +
The soul, if there’s a soul
 +
moves out to what it loves,
 +
whatever makes it whole.
 +
The sea stands still and moves,
 +
 
 +
denoting nothing new,
 +
deliberating now.
 +
The days are made of hours,
 +
hours of instances.
 +
and none of them are ours.
 +
The sand blows through the fences.
 +
Light darkens on the grass.
 +
This too shall come to pass.
 +
</Poem>

23:19, 13 जून 2015 के समय का अवतरण

घास से उठती आभा चमकती है
सांसारिकता की ढूह पर।
विलीन हो जाएगी यह भी,
पर क्या होगा यह सब शीघ्र ?

एक पतंग धागे को सिर हिलाती है ।
एक बादल बुनता है
उठती-गिरती लहरों के ऊपर,
दूसरे बादल से जुड़ते हुए ।

वे सब एक हुजूम की तरह आगे बढ़ते हैं,
और आसमान एक कफ़न बन जाता है
सूरज के उस्तरे से कट कर ।
उसके बाद, कुछ भी करने को बाकी नहीं ।

आत्मा, अगर सच में कोई आत्मा है,
उन्मुख होती है प्रेम की तरफ,
और जो भी उसे करता है संपूर्ण
सागर अचल, उद्वेलित होता है

विचार-मंथन करता हुआ
नया कहने को कुछ नहीं ।
दिन बना घण्टों से,
घण्टे क्षणों से,

पर इनमें से भी कोई अपना नहीं ।
रेतीली हवा बाड़ों से होकर गुजरती है,
घास की आभा मंद होती है
पर यह भी तो क्षणभंगुर ।

और अब यही कविता मूल अमरीकी अँग्रेज़ी में पढ़ें।

SEA SALT

Light dazzles from the grass
over the carnal dune,
This too shall come to pass,
but will it happen soon?

A kite nods to its string.
A cloud is happening
above the tripping waves,
joined by another cloud.

They are a crowd that moves.
The sky becomes a shroud
cut by a blade of sun.
There’s nothing to be done.

The soul, if there’s a soul
moves out to what it loves,
whatever makes it whole.
The sea stands still and moves,

denoting nothing new,
deliberating now.
The days are made of hours,
hours of instances.
and none of them are ours.
The sand blows through the fences.
Light darkens on the grass.
This too shall come to pass.