भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ढूँढे़ नया मकान / कुँअर बेचैन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
छो (New page: * ढूँढे़ नया मकान / कुँअर बेचैन {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुँअर बेचैन }} अधर-अधर क...) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | |||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna |
19:30, 22 जनवरी 2008 के समय का अवतरण
अधर-अधर को ढूँढ रही है
ये भोली मुस्कान
जैसे कोई महानगर में ढूँढे नया मकान
नयन-गेह से निकले आँसू
ऐसे डरे-डरे
भीड़ भरा चौराहा जैसे
कोई पार करे
मन है एक, हजारों जिसमें
बैठे हैं तूफान
जैसे एक कक्ष के घर में रुकें कई मेहमान
साँसों के पीछे बैठे हैं
नये-नये खतरे
जैसे लगें जेब के पीछे
कई जेब-कतरे
तन-मन में रहती है हरदम
कोई नयी थकान
जैसे रहे पिता के घर पर विधवा सुता जवान
-- यह कविता Dr.Bhawna Kunwar द्वारा कविता कोश में डाली गयी है।