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"शव-साधना / अशोक कुमार शुक्ला" के अवतरणों में अंतर
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प्रिये ! | प्रिये ! | ||
− | उन आन्तरिक आत्मीय क्षणों में | + | उन आन्तरिक |
− | तुम्हारा प्रतिक्रिया शून्य और | + | आत्मीय क्षणों में |
− | निष्प्राण पडा रहना | + | जब प्रकृति को |
+ | निरन्तरता और अमरता | ||
+ | प्रदान करने वाला | ||
+ | अमृत छलक रहा हो | ||
+ | तो तुम्हारा | ||
+ | प्रतिक्रिया शून्य और निष्प्राण | ||
+ | पडा रहना | ||
विचलित करता है मुझे | विचलित करता है मुझे | ||
− | सोचता हूं | + | ...सोचता हूं |
क्या सचमुच | क्या सचमुच | ||
तुम आधा अंग हो मेरा ? | तुम आधा अंग हो मेरा ? | ||
या | या | ||
− | शव आसन सी तुम्हारी मुद्रा | + | शव आसन की सी |
− | + | तुम्हारी मुद्रा में | |
आधा अधूरा ही मै | आधा अधूरा ही मै | ||
कर रहा हूं | कर रहा हूं | ||
− | शव साधना | + | वात्सायन की शव साधना..! |
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+ | [https://www.youtube.com/watch?v=O_5QV4gTR7I&feature=youtu.be|कविता यू ट्यूब पर सुनें] |
17:52, 28 जनवरी 2018 के समय का अवतरण
प्रिये !
उन आन्तरिक
आत्मीय क्षणों में
जब प्रकृति को
निरन्तरता और अमरता
प्रदान करने वाला
अमृत छलक रहा हो
तो तुम्हारा
प्रतिक्रिया शून्य और निष्प्राण
पडा रहना
विचलित करता है मुझे
...सोचता हूं
क्या सचमुच
तुम आधा अंग हो मेरा ?
या
शव आसन की सी
तुम्हारी मुद्रा में
आधा अधूरा ही मै
कर रहा हूं
वात्सायन की शव साधना..!