भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पप्पी करे शिकायत / जहीर कुरैशी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जहीर कुरैशी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 25: पंक्ति 25:
 
शाला जाते समय मुझे टॉफी भी देती हैं।
 
शाला जाते समय मुझे टॉफी भी देती हैं।
 
लेकिन जब भी मम्मी जी को गुस्सा आता है-
 
लेकिन जब भी मम्मी जी को गुस्सा आता है-
मुझको लगता है-मुझ पर ही गुस्सा सारा था।</poem>
+
मुझको लगता है-मुझ पर ही गुस्सा सारा था।
 +
</poem>

23:38, 20 अप्रैल 2021 के समय का अवतरण

पापा के घर में घुसते ही बोल उठी पप्पी-
पापा-पापा, आज हमें मम्मी ने मारा था।
हम तो खेल रहे थे अपनी शीलू गुड़िया से
शीलू गुड़िया से यानी आफत की पुड़िया से।
तभी आ गई थी रीता की नानी अपने घर,
मम्मी इकदम उलझ पड़ी थी नानी बुढ़िया से।
‘अबरीना के घर जाएगी तो तोडूँगी टाँग’,
हाँ पापा यह कहकर मम्मी ने दुतकारा था।
पापा जब अपनी मम्मी गुस्सा होा जाती हैं
उनका चेहरा लाल तवे जैसा हो जाता है।
तब अकसर मम्मी जी मुँह ढककर सो जाती हैं,
फिर मुझको क्या करना, मुझको समझ न आता है।
आज भी मम्मी गुस्सा करके लेटी थी पापा-
मैंने उन्हें छुआ तो चाँटा पड़ा करारा था।
वैसे पापा, अपनी मम्मी अच्छी मम्मी हैं,
मुझे प्यार करती हैं, मेरी पप्पी लेती हैं!
मुझे रात में परियों वाली कथा सुनाती हैं,
शाला जाते समय मुझे टॉफी भी देती हैं।
लेकिन जब भी मम्मी जी को गुस्सा आता है-
मुझको लगता है-मुझ पर ही गुस्सा सारा था।