भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"रूप हवा के / देवेंद्रकुमार" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=देवेंद्रकुमार |अनुवादक= |संग्रह= }}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
}}
 
}}
 
{{KKCatBaalKavita}}
 
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>आसमान को हरा बना दें
+
<poem>हवा हुई शैतान!
धरती नीली, पेड़ बैंगनी
+
गाड़ी नीचे, ऊपर लाला
+
फिर क्या होगा-
+
गड़बड़-झाला!
+
 
+
कोयल के सुर मेढक बोले
+
उल्लू दिन में आँखें खोले
+
सागर मीठा, चंदा काला,
+
फिर क्या होगा-
+
गड़बड़-झाला!
+
 
+
दादा माँगे दाँत हमारे
+
रसगुल्ले हों खूब करारे
+
चाबी अंदर, बाहर ताला,
+
फिर क्या होगा-
+
गड़बड़-झाला!
+
 
+
चिड़िया तैरे, मछली चलती
+
आग वहाँ पानी में जलती
+
बरफी में है गरम मसाला,
+
फिर क्या होगा-
+
गड़बड़-झाला!
+
 
+
दूध गिरे बादल से भाई
+
तालाबों में पड़ी मलाई
+
मक्खी बुनती मकड़ी जाला,
+
फिर क्या होगा-
+
गड़बड़-झाला!
+
 
+
 
+
रूप हवा के
+
 
+
हवा हुई शैतान!
+
 
खिड़की दरवाजे खड़काए,
 
खिड़की दरवाजे खड़काए,
 
बेपर कागज खूब उड़ाए,
 
बेपर कागज खूब उड़ाए,

09:33, 4 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण

हवा हुई शैतान!
खिड़की दरवाजे खड़काए,
बेपर कागज खूब उड़ाए,
सारे घर में धूल बिखेरे
अम्माँ है हैरान!
हवा हुई शैतान!

हँसते फूलों को दुलराती,
बादल कहाँ-कहाँ ले जाती,
बाँसों से सीटी बजवाए
कैसी इसकी शान!