"सुदामा पाण्डे का प्रजातंत्र (एक) / धूमिल" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धूमिल |संग्रह = सुदामा पाण्डे का प्रजातंत्र / धूमिल }} स...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
सेर भर कबाब हो | सेर भर कबाब हो | ||
+ | |||
एक अद्धा शराब हो | एक अद्धा शराब हो | ||
+ | |||
नूरजहाँ का राज हो | नूरजहाँ का राज हो | ||
+ | |||
ख़ूब हो-- | ख़ूब हो-- | ||
+ | |||
भले ही ख़राब हो | भले ही ख़राब हो | ||
+ | |||
::--(एक लोकगीत) | ::--(एक लोकगीत) | ||
23:53, 4 फ़रवरी 2008 के समय का अवतरण
सेर भर कबाब हो
एक अद्धा शराब हो
नूरजहाँ का राज हो
ख़ूब हो--
भले ही ख़राब हो
- --(एक लोकगीत)
भेंट
कल सुदामा पांड़े मिले थे
हरहुआ बाज़ार में । ख़ुश थे । बबूल के
वन में वसन्त से खिले थे ।
फटकारते हुए बोले, यार ! ख़ूब हो
देखते हो और कतराने लगते हो,
गोया दोस्ती न हुई, चलती-फिरती हुई ऊब हो
आदमी देखते हो, सूख जाते हो
पानी देखते हो गाने लगते हो ।
वे ज़ोर से हँसे । मैं भी हँसा ।
संत के हाथ--बुरा आ फँसा
सोचा--
उन्होंने मुझे कोंचा । क्या सोचते हो ?
रात-दिन
बेमतलब बवंडर का बाल नोचते हो
ले देकर एक अदद
चुप हो ।
वक़्त को गंजेड़ी की तरह फूँकते रहे हो
चेहरे पर चमाईन मूत गई है । इतनी फटकार
जैसे वर्षों से अपनी आँखों में थूकते रहे हो
अरे यार, दुनिया में क्या रखा है ?
खाओ-पियो, मज़ा लो
विजयी बनो--विजया लो
रंगरती
ठेंगे पर चढ़े करोड़पति ।