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"उसकी चूड़ी / उर्मिलेश" के अवतरणों में अंतर
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उसकी चूड़ी, उसकी बेंदी, उसकी चुनर से अलग। | उसकी चूड़ी, उसकी बेंदी, उसकी चुनर से अलग। | ||
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मैं सफर में भी न हो पाया कभी घर से अलग। | मैं सफर में भी न हो पाया कभी घर से अलग। | ||
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गो कि मेरी ‘पास-बुक’ से भी बड़े थे उनके ख्वाब | गो कि मेरी ‘पास-बुक’ से भी बड़े थे उनके ख्वाब | ||
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फिर भी उसने पाँव फैलाये न चादर से अलग। | फिर भी उसने पाँव फैलाये न चादर से अलग। | ||
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मुझसे वो अक्सर लड़ा करती है, मतलब साफ है | मुझसे वो अक्सर लड़ा करती है, मतलब साफ है | ||
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वो न भीतर से अलग है, वो न बाहर से अलग। | वो न भीतर से अलग है, वो न बाहर से अलग। | ||
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पत्रिकायें उसके पढ़ने की मैं लाया था कई | पत्रिकायें उसके पढ़ने की मैं लाया था कई | ||
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फिर भी उसने कुछ न देखा मेरे स्वेटर से अलग। | फिर भी उसने कुछ न देखा मेरे स्वेटर से अलग। | ||
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सोच में उसके भरी हैं मेरी लापरवाहियाँ | सोच में उसके भरी हैं मेरी लापरवाहियाँ | ||
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यों वो सोने जा रही हैं मेरे बिस्तर से अलग। | यों वो सोने जा रही हैं मेरे बिस्तर से अलग। | ||
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उम्र ढलते ही बनेगा कौन मेरा आइना | उम्र ढलते ही बनेगा कौन मेरा आइना | ||
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हो न पाया मैं कभी उससे इसी डर से अलग। | हो न पाया मैं कभी उससे इसी डर से अलग। | ||
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दोस्तों, हर प्रश्न का उत्तर तुम्हें मिल जायेगा | दोस्तों, हर प्रश्न का उत्तर तुम्हें मिल जायेगा | ||
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सोचना कुछ देर घर को अपने दफ्तर से अलग। | सोचना कुछ देर घर को अपने दफ्तर से अलग। | ||
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20:38, 13 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
उसकी चूड़ी, उसकी बेंदी, उसकी चुनर से अलग।
मैं सफर में भी न हो पाया कभी घर से अलग।
गो कि मेरी ‘पास-बुक’ से भी बड़े थे उनके ख्वाब
फिर भी उसने पाँव फैलाये न चादर से अलग।
मुझसे वो अक्सर लड़ा करती है, मतलब साफ है
वो न भीतर से अलग है, वो न बाहर से अलग।
पत्रिकायें उसके पढ़ने की मैं लाया था कई
फिर भी उसने कुछ न देखा मेरे स्वेटर से अलग।
सोच में उसके भरी हैं मेरी लापरवाहियाँ
यों वो सोने जा रही हैं मेरे बिस्तर से अलग।
उम्र ढलते ही बनेगा कौन मेरा आइना
हो न पाया मैं कभी उससे इसी डर से अलग।
दोस्तों, हर प्रश्न का उत्तर तुम्हें मिल जायेगा
सोचना कुछ देर घर को अपने दफ्तर से अलग।