भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कह गया जो आता हूँ अभी (शीर्षक कविता) / अनिरुद्ध उमट" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिरुद्ध उमट |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> अ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=अनिरुद्ध उमट
 
|रचनाकार=अनिरुद्ध उमट
|संग्रह=
+
|संग्रह=कह गया जो आता हूँ अभी / अनिरुद्ध उमट
 
}}  
 
}}  
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}

08:26, 15 नवम्बर 2015 के समय का अवतरण

अभी आएँगे वे
ज़रा पान की दूकान पर गए हैं

राह देखती खाली कुर्सी

कितनी चीज़ें हैं
इस घर में
आत्माएँ उनकी रोती उस क्षण को

कह गया जो आता हूँ अभी...

प्यास
आँगन में एक कुआँ
जिसका जल
हर प्यास में ऊपर उठ आता

एक दिन
घर का दरवाज़ा खुला देख
बाहर को गया

तो बरसों लौटा नहीं

एक-एक कर सभी
उतरे कुएँ में
बनाने भीतर ही दरवाज़ा
किसी की भी आवाज़
नहीं सुनाई दी फिर कभी

एक दिन भूला-भटका जल
लौट आया
और कुएँ में लगा झाँकने
पीछे से दीवारों ने उसकी गर्दन
धर-दबोची

सभी घरो के दरवाज़े बंद थे...