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"तुम न आये एक दिन / ज़फ़र" के अवतरणों में अंतर

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देखते हैं ख़्वाब में जिस दिन किसू की चश्म-ए-मस्त
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रहते हैं हम दो जहाँ से बेख़बर दो दिन तलक
  
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तो जियें हम और इस उम्मीद पर दो दिन तलक
  
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क्या सबब क्या वास्ता क्या काम था बतलाइये
तो जियें हम और इस उम्मीद पर दो दिन तलक<br><br>
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12:06, 15 अगस्त 2009 के समय का अवतरण

तुम न आये एक दिन का वादा कर दो दिन तलक
हम पड़े तड़पा किये दो-दो पहर दो दिन तलक

दर्द-ए-दिल अपना सुनाता हूँ कभी जो एक दिन
रहता है उस नाज़नीं को दर्द-ए-सर दो दिन तलक

देखते हैं ख़्वाब में जिस दिन किसू की चश्म-ए-मस्त
रहते हैं हम दो जहाँ से बेख़बर दो दिन तलक

गर यक़ीं हो ये हमें आयेगा तू दो दिन के बाद
तो जियें हम और इस उम्मीद पर दो दिन तलक

क्या सबब क्या वास्ता क्या काम था बतलाइये
घर से जो निकले न अपने तुम "ज़फ़र" दो दिन तलक