Last modified on 26 अगस्त 2017, at 18:30

"विदेह में देह / अर्चना कुमारी" के अवतरणों में अंतर

('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अर्चना कुमारी |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=अर्चना कुमारी
 
|रचनाकार=अर्चना कुमारी
 
|अनुवादक=
 
|अनुवादक=
|संग्रह=
+
|संग्रह=पत्थरों के देश में देवता नहीं होते / अर्चना कुमारी
 
}}
 
}}
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}

18:30, 26 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

किश्तों में मिली जिन्दगी के-
रंग बराबर रहे हरदम
कि जाना स्वीकृत करने के बाद
आने का आह्लाद संयत हो गया
कुछ निशान शेष खुरचने के
स्पर्श के नाखूनों के
नकार दिया करीबियों को
बचाए रखा संदेह
जिज्ञासा नहीं बची
जानने जैसी सामान्य बातों में
इतना समझ आते ही
कि गलत है जो भी है
कच्ची उम्र ने गाँठ बाँध ली कसकर
कि बन्द कर ली आँखें
मूँद लिए कान
लब सी लिए...............
उम्र का बोध लिए अबोध रही लड़की
सुलझा रही रहस्य देह का
उसने विदेह होना चुना था कभी !!!