"पायताने बैठ कर २ / शैलजा पाठक" के अवतरणों में अंतर
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ठीक होली की शाम चुडि़हारिन  | ठीक होली की शाम चुडि़हारिन  | ||
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रात वीराने चाचा का संदेसा  | रात वीराने चाचा का संदेसा  | ||
आज हम बड़का टोला में रुकेंगे  | आज हम बड़का टोला में रुकेंगे  | ||
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अम्मा कहती रही  | अम्मा कहती रही  | ||
धरती लाल रंग गई आज  | धरती लाल रंग गई आज  | ||
14:43, 21 दिसम्बर 2015 के समय का अवतरण
मझली चाची के हलदियाईन हाथ
टह लाल आंखें
चूल्हे पर खदकते अदहन से सवाल
ना कभी कोई सुना ना सुन पायेगा
तीज पर कसी चूडिय़ां
छनछनाती नहीं
कलाई पर गोल चिपकी सी होती हैं
जैसे कलेजे को घेरे रहता है दर्द
ठीक होली की शाम चुडि़हारिन
उतार लेगी पुरानी चूडिय़ां
पहना जायेगी नई
चाची झोंक दी जायेगी आग में लकड़ी की तरह
रात मन के सूने आंगन में
जलेगी होली
अतीत का हुड़दंग
मंजीरे पर फाग गाते लोग
पिसती भांग का नशा
सामने वाली खिड़की पर
एकटक निहारती एक जोड़ी आंख
भीगकर भी ना भीग पाई उसके रंग से
रात वीराने चाचा का संदेसा
आज हम बड़का टोला में रुकेंगे
फागुनहटा चले तो गांव घर बड़ा याद आवे है
अम्मा कहती रही
धरती लाल रंग गई आज
चाची कोरी की कोरी
बड़का टोला से देर रात तक
आती रही नाच-गाने की आवाज
मोरे नैना कटीले दरोगा जी
सब दुश्मन निगोड़े दरोगा जी।
	
	