भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"घर सास के आगे / वचनेश" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(New page: लेखक: वचनेश Category:कविताएँ Category:छन्द Category:वचनेश ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~ घर सा...) |
|||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
− | + | {{KKRachna | |
− | + | |रचनाकार=वचनेश | |
− | [[Category: | + | |अनुवादक= |
− | + | |संग्रह= | |
− | + | }} | |
− | + | [[Category:छंद]] | |
+ | <poem> | ||
घर सास के आगे लजीली बहू रहे घूँघट काढ़े जो आठौ घड़ी। | घर सास के आगे लजीली बहू रहे घूँघट काढ़े जो आठौ घड़ी। | ||
− | |||
लघु बालकों आगे न खोलती आनन वाणी रहे मुख में ही पड़ी। | लघु बालकों आगे न खोलती आनन वाणी रहे मुख में ही पड़ी। | ||
− | |||
गति और कहें क्या स्वकन्त के तीर गहे गहे जाती हैं लाज गड़ी। | गति और कहें क्या स्वकन्त के तीर गहे गहे जाती हैं लाज गड़ी। | ||
− | |||
पर नैन नचाके वही कुँजड़े से बिसाहती केला बजार खडी।। | पर नैन नचाके वही कुँजड़े से बिसाहती केला बजार खडी।। | ||
− | |||
-(परिहास, पृ०-३०)वचनेश | -(परिहास, पृ०-३०)वचनेश | ||
+ | </poem> |
23:12, 7 जून 2021 के समय का अवतरण
घर सास के आगे लजीली बहू रहे घूँघट काढ़े जो आठौ घड़ी।
लघु बालकों आगे न खोलती आनन वाणी रहे मुख में ही पड़ी।
गति और कहें क्या स्वकन्त के तीर गहे गहे जाती हैं लाज गड़ी।
पर नैन नचाके वही कुँजड़े से बिसाहती केला बजार खडी।।
-(परिहास, पृ०-३०)वचनेश