"बाजीगर बन गई व्यवस्था / जगदीश व्योम" के अवतरणों में अंतर
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बाजीगर बन गई व्यवस्था | बाजीगर बन गई व्यवस्था | ||
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हम सब हुए जमूरे | हम सब हुए जमूरे | ||
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सपने कैसे होंगे पूरे | सपने कैसे होंगे पूरे | ||
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चार कदम भर चल पाए थे | चार कदम भर चल पाए थे | ||
− | |||
पैर लगे थर्राने | पैर लगे थर्राने | ||
− | |||
क्लांत प्रगति की निरख विवशता | क्लांत प्रगति की निरख विवशता | ||
− | |||
छाया लगी चिढ़ाने | छाया लगी चिढ़ाने | ||
− | |||
मन के आहत मृगछौने ने | मन के आहत मृगछौने ने | ||
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बीते दिवस बिसूरे | बीते दिवस बिसूरे | ||
− | + | सपने कैसे होंगे पूरे... | |
हमने निज हाथों से युग- | हमने निज हाथों से युग- | ||
− | |||
पतवार जिन्हें पकड़ाई | पतवार जिन्हें पकड़ाई | ||
− | |||
वे शोषक हो गए | वे शोषक हो गए | ||
− | + | हुए हम चिर शोषित तरुणाई | |
− | हुए हम चिर शोषित | + | |
− | + | ||
`शोषण' दुर्ग हुआ अलबत्ता- | `शोषण' दुर्ग हुआ अलबत्ता- | ||
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तोड़ो जीर्ण कंगूरे | तोड़ो जीर्ण कंगूरे | ||
− | + | सपने कैसे होंगे पूरे... | |
वे तो हैं स्वच्छंद, करेंगे | वे तो हैं स्वच्छंद, करेंगे | ||
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जो मन में आएगा | जो मन में आएगा | ||
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सूरज को गाली देंगे | सूरज को गाली देंगे | ||
− | |||
कोई क्या कर पाएगा | कोई क्या कर पाएगा | ||
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दोष व्यक्ति का नहीं | दोष व्यक्ति का नहीं | ||
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व्यवस्था में छल छिद` घनेरे | व्यवस्था में छल छिद` घनेरे | ||
− | + | सपने कैसे होंगे पूरे... | |
मिला भेड़ियों को भेड़ों की | मिला भेड़ियों को भेड़ों की | ||
− | |||
अधिरक्षा का ठेका | अधिरक्षा का ठेका | ||
− | + | जिन सफ़ेदपोशों को हमने | |
− | + | ||
− | + | ||
देश निगलते देखा | देश निगलते देखा | ||
− | |||
स्वाभिमान को बेच उन्हें अब | स्वाभिमान को बेच उन्हें अब | ||
− | + | कैसे नमन करूँ रे | |
− | कैसे नमन | + | सपने कैसे होंगे पूरे... |
− | + | ||
बदल गए आदर्श | बदल गए आदर्श | ||
− | |||
आचरण की बदली परिभाषा | आचरण की बदली परिभाषा | ||
− | |||
चोर लुटेरे हुए घनेरे | चोर लुटेरे हुए घनेरे | ||
− | |||
यह अभिशप्त निराशा | यह अभिशप्त निराशा | ||
− | |||
बदले युग के वर्तमान को | बदले युग के वर्तमान को | ||
+ | किस विधि से बदलूँ रे | ||
+ | सपने कैसे होंगे पूरे... | ||
− | + | -डॅा. जगदीश व्योम | |
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09:57, 30 नवम्बर 2023 के समय का अवतरण
बाजीगर बन गई व्यवस्था
हम सब हुए जमूरे
सपने कैसे होंगे पूरे
चार कदम भर चल पाए थे
पैर लगे थर्राने
क्लांत प्रगति की निरख विवशता
छाया लगी चिढ़ाने
मन के आहत मृगछौने ने
बीते दिवस बिसूरे
सपने कैसे होंगे पूरे...
हमने निज हाथों से युग-
पतवार जिन्हें पकड़ाई
वे शोषक हो गए
हुए हम चिर शोषित तरुणाई
`शोषण' दुर्ग हुआ अलबत्ता-
तोड़ो जीर्ण कंगूरे
सपने कैसे होंगे पूरे...
वे तो हैं स्वच्छंद, करेंगे
जो मन में आएगा
सूरज को गाली देंगे
कोई क्या कर पाएगा
दोष व्यक्ति का नहीं
व्यवस्था में छल छिद` घनेरे
सपने कैसे होंगे पूरे...
मिला भेड़ियों को भेड़ों की
अधिरक्षा का ठेका
जिन सफ़ेदपोशों को हमने
देश निगलते देखा
स्वाभिमान को बेच उन्हें अब
कैसे नमन करूँ रे
सपने कैसे होंगे पूरे...
बदल गए आदर्श
आचरण की बदली परिभाषा
चोर लुटेरे हुए घनेरे
यह अभिशप्त निराशा
बदले युग के वर्तमान को
किस विधि से बदलूँ रे
सपने कैसे होंगे पूरे...
-डॅा. जगदीश व्योम